सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को पलटते हुए सरकार द्वारा एससी/एसटी एक्ट को 9वीं अनुसूची में डालना कितना व्यवहार्य है? समीक्षा कीजिये।
31 Aug, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
उत्तर की रूपरेखा
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सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 20 मार्च, 2018 को अनुसूचित जाति/जनजाति मामले पर दिये गए निर्णय के बाद हुई सार्वजनिक हिंसा को देखते हुए सरकार ने इसे संविधान की 9वीं अनुसूची में रखने का फैसला किया है जिससे भविष्य में अधिनियम के प्रावधानों के साथ कोई छेड़छाड़ न हो सके।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश ए.के. गोयल ने अनुसूचित जाति/जनजाति मामले पर दिये गए अपने निर्णय में कहा था कि ‘एक निर्दोष को दंडित नहीं किया जाना चाहिये, समाज में आतंक नहीं होना चाहिये। हम नहीं चाहते हैं कि अनुसूचित जाति/जनजाति के किसी भी सदस्य को उसके अधिकारों से वंचित रखा जाए। इस बात से कोई भी विवेकशील व्यक्ति असहमत नहीं हो सकता कि मनमानी गिरफ़्तारी से किसी निर्दोष की रक्षा होनी चाहिये, लेकिन इस दृष्टिकोण पर पर्याप्त बहस हो सकती है कि उक्त अधिनियम ‘समाज में आतंक’ पैदा कर रहा है।’ न्यायमूर्ति गोयल के इस निर्णय से न केवल समाज के कमज़ोर वर्ग की रक्षा की संवैधानिक परिकल्पना को आघात लगा है, बल्कि इस बात पर भी ध्यान गया है कि कैसे सामाजिक न्याय के प्रति उच्च पदस्थ लोगों में भी एक किस्म की असहिष्णुता पाई जाती है।
यह निर्णय बहुत-सी ऐसी बातों पर आधारित है जिन पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। उदाहरण के लिये-
उपर्युक्त तथ्यों को देखते हुए ऐसा लगता है कि ‘समाज में आतंक’ को समाप्त करने के अदालत के इस एकतरफा अभियान में संवैधानिक प्रक्रिया की अनदेखी हुई और ऐसी नीतियाँ सामने आ सकती हैं जो एससी/एसटी समुदाय को प्रभावित करेंगी। अतः इस अधिनियम को संविधान की 9वीं अनुसूची से संबंधित करने का सरकार का निर्णय तर्क सम्मत प्रतीत होता है।