‘आषाढ़ का एक दिन’ नाटक में इतिहास और कल्पना के समन्वय पर प्रकाश डालिये।
11 Sep, 2019 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्य‘आषाढ़ का एक दिन’ नाटक में एक ऐतिहासिक सी प्रतीत होने वाली कथा को आधार बनाया गया है। इसमें इतिहास नहीं है, इतिहास का केवल एक आवरण है। तथ्यात्मक स्तर पर देखें तो हम पाते हैं कि जो तथ्य नाटक में प्रयुक्त हुए हैं, वे ऐतिहासिक रूप से कम और मिथकीय रूप से ज्यादा प्रामाणिक हैं। कालिदास के संबंध में कुछ तथ्य भारत के सामाजिक जीवन में भली-भांति प्रचलित हैं, जैसे - उनका काली का भक्त होना, वेश्यागामी होना, प्रारंभ में तिरस्कृत रहना, फिर राजकुमारी से विवाह करना व अंतत: हिमालय का वासी होना। राजतरंगिणी में कालिदास के मातृगुप्त के रूप में कश्मीर का शासक बनने की बात है। यही धारणा प्रसाद के स्कंदगुप्त में भी है। इसी आलोक में राकेश ने उसे तथ्य के रूप में स्वीकार किया है।
नाटक के बाकी सभी चरित्र, सारी घटनाएँ और सारी स्थितियाँ काल्पनिक हैं। प्रियंगु, मल्लिका, अंबिका, विलोम, मातुल, रंगिणी-संगिणी, अनुस्वार, अनुनासिक आदि सभी चरित्र काल्पनिक ही हैं। अत: स्पष्ट है कि नाटक इतिहास के बहुत थोड़े से प्रसंगों को लेकर उनके साथ कल्पना का अत्यधिक प्रयोग करते हुए कथानक की सृष्टि करता है।
कुछ आलोचकों ने प्रश्न उठाया है कि इतिहास के साथ यह छेड़छाड़ क्या साहित्यकार की नैतिकता हो सकती है? इस संबंध में दो-तीन बातें ध्यान रखनी आवश्यक हैं। राकेश ने कल्पना का प्रयोग चाहे अधिक किया हो, प्राय: किसी ऐतिहासिक तथ्य को गलत रूप में प्रस्तुत नहीं किया है। दूसरे, यह नाटक न तो घटना प्रधान नाटक है, न चरित्र प्रधान। यह एक स्थिति प्रधान नाटक है। इतिहास के तथ्य घटनाओं और चरित्रों तक सीमित होते हैं, मनोवैज्ञानिक स्थितियों तक उनकी पहुँच नहीं होती। उदाहरणतया बार-बार आषाढ़ के मेघों का बरसना, मल्लिका और अंबिका; कालिदास और विलोम के तनावपूर्ण संबंधों का जटिल होते जाना नाटक के प्रमुख तत्त्व हैं और इतिहास ऐसे तत्त्वों की व्याख्या नहीं कर सकता। वस्तुत: राकेश की इतिहास दृष्टि बर्नार्ड शॉ जैसी है जिनके लिये इतिहास का संबंध तथ्यों से नहीं, अंत:प्रज्ञा से है।
अंतिम बिंदु यह है कि इतिहास के वातावरण को सृजित करके इस नाटक को क्या सफलता मिली? वस्तुत: नाटक का उद्देश्य वातावरण को ऐतिहासिक बनाना नहीं अपितु आज के रचनाकार की पीड़ा, वेदना और संत्रास को शाश्वतता प्रदान करना है। यह नाटक इतिहास के कुछ तथ्यों का इस प्रकार सर्जनात्मक प्रयोग करता है कि वे तथ्य अपने ऐतिहासिक संदर्भ से मुक्त होकर मानव के शाश्वत और सामान्य अनुभव के अंग बन जाते हैं।