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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    “जब तक करोड़ों लोग भूख और अज्ञान से पीड़ित हैं, तब तक मैं हर उस व्यक्ति को देशद्रोही समझूंगा जो उनके धन से शिक्षित होकर उनके प्रति थोड़ा भी ध्यान नहीं देते।” स्वामी विवेकानंद जी के इस कथन की प्रासंगिकता पर अपने विचार व्यक्त कीजिये।

    06 Sep, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • प्रभावी भूमिका में स्वामी विवेकानंद का परिचय लिखें।

    • प्रश्नगत कथन के संदर्भ में स्वामी विवेकानंद के विचारों पर प्रकाश डालते हुए वर्तमान में इसकी प्रासंगिकता बताइये ।

    • प्रश्नानुसार संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखिये।

    वेदांत के व्याख्याता और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद 19वीं सदी के भारत के प्रभावशाली चिंतकों में से एक थे। उन्होंने हिंदू धर्म और शंकर के अद्वैत वेदांत की वैज्ञानिक एवं व्यावहारिक व्याख्या करते हुए भारत में होने वाले नवजागरण को दिशा प्रदान की तथा वंचितों के उद्धार के प्रयास किये।

    स्वामी जी का यह कथन उस समय का है जब भारत परतंत्र था तथा अंग्रेजों के राज में केवल मध्य वर्ग शिक्षा प्राप्त कर पा रहा था। हालाँकि तब से लेकर वर्तमान स्थिति तक काफी सुधार हुआ है किन्तु आज भी गरीब बच्चे अपनी आर्थिक स्थिति के चलते शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते और अपना पेट भरने के लिये बचपन से ही मजदूरी करने हेतु विवश हो जाते हैं। इसके विपरीत संपन्न वर्ग अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे पाता है तथा गरीबों का और गरीब एवं अमीरों का और अमीर बनने का चक्र लगातार चलता रहता है।

    ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत की दोयम दर्जे की स्थिति इस बात का प्रमाण है कि आज भी देश के लाखों लोग भूखे पेट सोने को विवश हैं जबकि वहीं दूसरी तरफ संपन्न लोग विभिन्न सामजिक कार्यों में इतना अन्न बर्बाद करते हैं जिससे इन लाखों लोगों का पेट भरा जा सकता है।

    निष्कर्षतः स्वामी जी के इस कथन की प्रासंगिकता आज भी दिखाई देती है। स्वामी विवेकानंद ने भारतीय समाज में रोटी, कपड़ा, मकान व शिक्षा जैसी आधारभूत आवश्यकताओं से वंचित लोगों की दयनीय स्थिति की निन्दा की तथा समाज कल्याण के लिये इनका उत्थान आवश्यक बताया। उन्होंने इनके उत्थान के लिये शिक्षा को सबसे महत्त्वपूर्ण साधन माना। उनका मत था कि जिस राष्ट्र में वंचितों का सम्मान नहीं होता, वह राष्ट्र और समाज कभी महान नहीं बन सकता। शिक्षा के माध्यम से ही हांशिये पर स्थित लोगों को शक्तिशाली, भयविहीन तथा आत्म-सम्मान के साथ जीने के काबिल बनाया जा सकता है।

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