आप केंद्रीय विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक के रूप में कार्यरत हैं। आप अपनी एक सहकर्मी के प्रति आकर्षित हैं और उसे विवाह का प्रस्ताव देते हैं। वह खुशी-खुशी इसे स्वीकार कर लेती है। आपके इस निर्णय को आप दोनों के परिवार वाले भी खुशी-खुशी सहमति प्रदान कर देते हैं। एक दिन रात्रि भोजन के लिये वह आपको अपने घर पर आमंत्रित करती है और आपको अपने मम्मी, पापा व भाई-बहन से मिलवाती है। आपको सबका व्यवहार काफी अच्छा व आत्मीय लगता है। भोजन के उपरांत वह आपको घर दिखाने ले जाती है। घर के एक कोने में आपको छोटा सा कमरा दिखता है जो घर के बाकी हिस्सों की तुलना में काफी गंदा व अस्त-व्यस्त है और उसके भीतर से आपको एक बूढ़ी महिला के खाँसने की आवाज़ सुनाई देती है। आपके पूछने पर वह बताती है कि बूढ़ी औरत उसकी दादी है जो मानसिक रूप से बीमार है और सबको परेशान करती है, इसलिये उन्हें अलग रखा जाता है। जब आप स्वयं उसकी दादी से मिलते हैं और बात करते हैं तो पाते हैं कि वह एकदम सामान्य है। बातों-बातों में आपको यह भी पता चलता है कि परिवार वाले उनके साथ एकदम उदासीन व उपेक्षित व्यवहार करते हैं। (250 शब्द)
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उक्त प्रकरण के आलोक में हमारे देश में वृद्धों की समस्या पर संक्षिप्त टिप्पणी करें और इसके समाधान के उपाय भी सुझाएँ।
23 May, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़(a) उक्त प्रकरण हमारे सामाजिक व पारिवारिक मूल्यों में आए ह्रास को दर्शाता है। वर्तमान समय में वृद्धों का असम्मान, एकाकीपन व उनके प्रति असंवेदनशील व्यवहार समाज की एक बड़ी समस्या के रूप में उभरकर सामने आया है। जीवन की भागदौड़ में बुज़ुर्गों की उपेक्षा लगातार बढ़ती जा रही है। भारत में संयुक्त परिवार व्यवस्था का चरमराना बुर्ज़ुंगों के लिये नुकसानदायक साबित हुआ है। वर्तमान भौतिकतावादी संस्कृति के प्रसार ने भी इस समस्या को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
(b) वर्ष 2011 की जनगणना के आँकड़ों के अनुसार भारत में 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों का प्रतिशत कुल जनसंख्या में लगभग 8.6 है। जन-स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के कारण आने वाले वर्षों में कुल जनसंख्या में वृद्ध जनसंख्या का प्रतिशत तेज़ी से बढ़ने की उम्मीद है जो अपने साथ कई समस्याओं को लेकर आएगी। वृद्धावस्था की अपनी समस्याएँ है जो शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित हैं इसके अतिरिक्त भी कई अन्य समस्याएँ हैं जो बदलते सामाजिक-पारिवारिक मानदंडों के कारण उत्पन्न हो रही हैं जिसे हम निम्नलिखित रूपों में देख सकते हैं-
1. अकेलेपन व पृथक्करण की समस्या: वर्तमान युवा पीढ़ी द्वारा वृद्धों के प्रति उदासीन व्यवहार करना तथा उनके अनुभवों, विचारों, परामर्शों आदि की उपेक्षा करने के कारण वृद्ध स्वयं को परिवार व समाज की मुख्यधारा से अलग-थलग पाते हैं। इतना ही नहीं कई बार उन्हें या तो वृद्धाश्रमों में रखा जाता है या फिर अकेले जीवन व्यतीत करने को बाध्य होना पड़ता है। हाल के दशकों में यह समस्या तेज़ी से बढ़ी है।
2. आर्थिक निर्भरता तथा परावलंबन की समस्या: कार्यक्षमता में कमी के कारण वृद्धों की आर्थिक स्थिति प्रभावित होती जिससे उनकी दूसरों पर निर्भरता बढ़ती है। इसके अतिरिक्त बढ़ती उम्र के साथ कई अन्य कार्यों के लिये भी वृद्ध-जन परिवार के अन्य सदस्यों पर निर्भर होते हैं परंतु उन्हें उचित सहयोग व सहारा नहीं प्रदान किया जाता है।
3. स्नेह तथा आत्मीय सहयोग का अभाव: बुज़ुर्गों की एक अन्य प्रमुख समस्या है जो छोटे-बड़े स्तर पर लगभग हर परिवार में आज देखने को मिल रही है।
4. वृद्धों का तिरस्कार व अनादर एक बड़ी पारिवारिक व सामाजिक समस्या के रूप में उभरकर सामने आई है।
5. इसके अतिरिक्त वृद्धों के प्रति बढ़ते अपराध भी हाल के वर्षों में एक प्रमुख समस्या के रूप में सामने आए जिनकी आवृत्ति पहले की तुलना में काफी बढ़ी है।
बुज़ुर्ग हमारे परिवार व समाज के आधार स्तंभ हैं। यदि आधार कमज़ोर होगा तो हमारा समाज भीतर से खोखला होता जाएगा, इसलिये आज आवश्यकता है बुजुर्गों के प्रति संवेदनशील व सहयोगात्मक व्यवहार की।
स्नेह व प्रेम की मीठी बात बुज़ुर्गों में जीने की आस व चाह बढ़ाती है। अत: स्नेह व आत्मीय व्यवहार बुज़ुर्गों के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धा व सम्मान होगा।
अपने परंपरागत सामाजिक व पारिवारिक मूल्यों के प्रति लोगों को जागरूक बनाया जाना चाहिये।
बुज़ुर्गों के स्वास्थ्य व सुरक्षा के बेहतर प्रबंध किये जाने की आवश्यकता है।
आर्थिक रूप से बुज़ुर्गों को आत्मनिर्भर बनाने के लिये वृद्धावस्था पेंशन का दायरा बढ़ाया जाए।