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प्रश्न :
उदारीकरण के बाद से भारत की विदेश नीति किस प्रकार विकसित हुई है और वर्तमान में कौन-से कारक इसे सबसे अधिक प्रभावित कर रहे हैं? (250 शब्द)
02 May, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंधउत्तर :
प्रश्न विच्छेद
♦ उदारीकरण के बाद भारत की विदेश नीति पर चर्चा।
♦ वर्तमान में इसे प्रभावित करने वाले कारक।
हल करने का दृष्टिकोण
♦ सर्वप्रथम परिचय दें।
♦ बताएँ कि उदारीकरण के बाद भारत की विदेश नीति का विकास कैसे हुआ।
♦ उन कारणों की चर्चा करें जो वर्तमान में इसे प्रभावित कर रहा है।
♦ प्रभावी निष्कर्ष लिखें।
एक बात पर विशेष रूप से ध्यान दीजिये कि यह आवश्यक नहीं है कि आपका उत्तर पैराग्राफ में ही लिखा हुआ हो, आप पॉइंट टू पॉइंट लिखने का प्रयास कीजिये। परीक्षा भवन में परीक्षक का जितना ध्यान आपके उत्तर के प्रस्तुतिकरण पर होता है उतना ही ध्यान इस बात पर भी होता है कि आप कम-से-कम शब्दों में (एक अधिकारी की तरह) अपनी बात को समाप्त करें।
स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत भारत में एक ओर इसकी खस्ता हालत आर्थिक स्थिति व कई सारी आंतरिक चुनौतियाँ विद्यमान थीं। तो दूसरी ओर, शीत युद्धकालीन वैश्विक व्यवस्था की उपस्थिति, ऐसे में दोनों चुनौतियों से निपटना भारत के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती थी। अत: भारत द्वारा मध्यम मार्ग का अनुसरण करते हुए गुटनिरपेक्ष नीति को अपनाया गया जो व्यवाहारिक व सामरिक विकल्प के रूप में थी। साथ ही, शांति की स्थापना और भारत द्वारा सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने में पंचशील सिद्धांत का भी उल्लेखनीय योगदान रहा। इस दौर में विदेश नीति का निर्धारण मुख्य रूप से सामरिक सुरक्षा को ध्यान में रखकर किया जाता रहा।- वर्ष 1991 के बाद द्विध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था की समाप्ति के पश्चात् वैश्विक समुदाय आर्थिक सुधारों की ओर अग्रसर हुए। इस संदर्भ में भारत ने भी अपनी आर्थिक नीतियों में परिवर्तन कर उदारीकरण की ओर कदम बढ़ाया और आर्थिक विकास पर बल दिया। जिसने भारत को सभी महत्त्वूपर्ण देशों के साथ संबंध सुधारने का अवसर प्रदान किया। इस प्रकार अब विदेश नीति आर्थिक स्थिति के अनुसार निर्धारित होने लगी।
- यह भारतीय विदेश नीति के विकास के लिये बिल्कुल अनुकूल समय रहा। एक होते विश्व में जहाँ प्रतिस्पर्द्धी राजनीतिक गुटों का अभाव था, वहीं इसने भारत को महत्त्वपूर्ण देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर बनाने का अवसर प्रदान किया।
- वैश्वीकरण द्वारा सृजित अंतर्निभरता के कारण दो और दो से अधिक शक्तियों के मध्य संघर्ष की स्थिति में कमी आ गई, पूंजी और व्यापार प्रवाह में बढ़ोतरी होने लगी ऐसे में भारत द्वारा विकसित देशों के साथ-साथ पड़ोसी व क्षेत्रीय शक्तियों के साथ संबंध सुधारने पर बल दिया गया।
इस संदर्भ में लुक ईस्ट नीति, गुजराल डॉक्ट्रीन, वर्तमान में एक्ट ईस्ट नीति हो या भारत का सॉफ्ट पावर वाला नज़रिया इत्यादि जैसे नीतियों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा जिसने भारतीय विदेश संबंध के स्वस्थ प्रचार में महत्ती भूमिका निभाई। इस समय के अंतर्राष्ट्रीय मंचों यथा, विश्व व्यापार संगठन, G-20, ब्रिक्स इत्यादि की भूमिका भी अविस्मरणीय रही।
- अत: आर्थिक वैश्विक व्यवस्था ने भारतीय विदेश नीति को फलने-पूलने का अवसर प्रदान किया है और वर्तमान में भारतीय विदेश नीति नए फलक की ओर अग्रसर हुई। परंतु विद्यमान कुछ चुनौतियाँ भी हैं जो भारतीय विदेश नीति को प्रभावित कर रहीं है उदाहरणस्वरूप-
♦ आतंकवाद वर्तमान विदेश नीति के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती के रूप में विद्यमान है।
♦ पश्चिम एशिया में संघर्ष की स्थिति।
♦ पाकिस्तान व चीन का रवैया।
♦ दक्षिण चीन सागर विवाद।
♦ जलवायु परिवर्तन जनित समस्या।
♦ प्रमुख शक्तियों के मध्य प्रतिस्पर्द्धात्मक माहौल।
इस प्रकार निश्चित रूप से भारतीय विदेश नीति समय के साथ-साथ परिवर्तन का साक्षी रहा है और वर्तमान में भी वैश्विक व्यवस्था के अनुरूप खुद को ढाल रहा है जिसे ऊर्जा, सुरक्षा, जल, अर्थव्यवस्था व पर्यावरण के संदर्भ में देख सकते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि विदेश नीति के समक्ष विद्यमान चुनौतियों से निपटने हेतु भारत द्वारा बेहतर कूटनीतिक विकल्प तलाशने होंगे।
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