• प्रश्न :

    यह कहना कहाँ तक समीचीन है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के बीज हिटलर की विदेश नीति में अंतर्निहित थे? हिटलर की विदेश नीति के सिद्धांतों के आधार पर अपने तर्कों को प्रस्तुत करें। (250 शब्द)

    02 May, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    प्रश्न विच्छेद

    ♦ द्वितीय विश्वयुद्ध के लिये ज़िम्मेदार कारणों में हिटलर की विदेश नीति की भूमिका बतानी है।

    हल करने का दृष्टिकोण

    ♦ सर्वप्रथम भूमिका लिखें।

    ♦ हिटलर की विदेश नीति के उद्देश्यों तथा कार्रवाइयों का उल्लेख करें।

    ♦ द्वितीय विश्व युद्ध के लिये ज़िम्मेदार अन्य कारणों का भी उल्लेख करते हुए निष्कर्ष लिखें।

    एक बात पर विशेष रूप से ध्यान दीजिये कि यह आवश्यक नहीं है कि आपका उत्तर पैराग्राफ में ही लिखा हुआ हो, आप पॉइंट टू पॉइंट लिखने का प्रयास कीजिये। परीक्षा भवन में परीक्षक का जितना ध्यान आपके उत्तर के प्रस्तुतिकरण पर होता है उतना ही ध्यान इस बात पर भी होता है कि आप कम-से-कम शब्दों में (एक अधिकारी की तरह) अपनी बात को समाप्त करें।


    प्रथम विश्व युद्ध के बाद उत्पन्न परिस्थितियों से फासिस्ट शक्तियों का उदय हुआ, जिसकी अभिव्यक्ति जर्मनी में हिटलर के नेतृत्व में नाजीवाद के रूप में हुई। हिटलर की विदेश नीति जर्मन साम्राज्य के विस्तार पर आधारित थी, जो अंतत: द्वितीय विश्वयुद्ध का कारण बनी।

    • वस्तुत: हिटलर जर्मनी को विश्व का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र बनाना चाहता था। इसलिये उसने अपनी विदेश नीति के लिये निम्नलिखित उद्देश्य अपनाए:
    • वर्साय की संधि का उल्लंघन करना। इस संधि के प्रावधान जर्मनी के लिये अपमानजनक थे तथा उस पर आरोपित किये गए थे।
    • अखिल जर्मन साम्राज्य की स्थापना करना। इसके लिये वह विश्व में समस्त जर्मन जातियों को एकसूत्र में संगठित करना चाहता था।
    • साम्यवाद के प्रसार को रोकना।
    • अपनी विदेश नीति की अभिव्यक्ति तथा उसे अमलीजामा पहनाने के लिये कई आक्रामक कदम उठाए, जो अंतत: द्वितीय विश्व युद्ध का कारण बनी, जैसे:
    • 1933 में राष्ट्र संघ से अलग होना।
    • 1935 में राइनलैंड का सैन्यीकरण करना।
    • 1936 में रोम-बर्लिन धुरी का निर्माण करना जिसमें जापान के शामिल होने पर यह रोम-बर्लिन-टोकियो धुरी बन गया। यह साम्यवाद विरोधी गुट था।
    • 1938 में ऑस्ट्रिया पर हमला तथा बाद में चेकोस्लोवाकिया पर नियत्रंण।
    • 1 सितंबर, 1939 को पोलैंड पर आक्रमण जिससे द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत हुई।

    लेकिन सिक्के के दूसरे पहलू को देखें तो द्वितीय विश्व युद्ध के बीज पेरिस शांति सम्मेलन (1919) में हुई विभिन्न संधियों में ही निहित थे, जिसमें सबसे प्रमुख वर्साय की संधि थी। इस सम्मेलन से असंतुष्ट जर्मनी एवं इटली में फासिस्ट शक्तियों का उदय हुआ, जिन्होंने रोम-बर्लिन गुट का निर्माण किया और द्वितीय विश्व युद्ध के लिये परिस्थितियाँ तैयार कीं। इन परिस्थितियों को तैयार करने में ब्रिटेन एवं फ्राँस की तुष्टीकरण की नीति भी ज़िम्मेदार थी।

    निष्कर्षत: कह सकते हैं कि द्वितीय विश्व युद्ध के बीज पेरिस शांति सम्मेलन में ही निहित थे, जिसे पुष्पित-पल्लवित करने में हिटलर की विदेश नीति ने भूमिका निभाई, जिसका फल द्वितीय विश्व युद्ध के रूप में सामने आया।