लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    ‘दिनकर’ की राष्ट्रीय चेतना पर प्रकार डालिये। (2015 प्रश्नपत्र 7a)

    25 Jan, 2018 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्य

    उत्तर :

    हिंदी साहित्य में दिनकर की पहचान राष्ट्रकवि के रूप में है। उनका साहित्य राष्ट्रीय जागरण व संघर्ष के आह्वान का जीता-जागता दस्तावेज़ है। दिनकर जी के यहाँ राष्ट्रीय चेतना कई स्तरों पर व्यक्त हुई है।

    हुंकार, रेणुका, इतिहास के आँसू जैसी कविताओं में दिनकर जी ने विद्रोह और विप्लव के स्वर को उभारा है। इनमें कर्म, उत्साह, पौरुष एवं उत्तेजना का संचार है। यह सब तत्कालीन राष्ट्रीय आंदोलन की प्रगति के लिये अत्यंत सहायक सिद्ध हुआ।

    दिनकर जी के यहाँ राष्ट्रीय चेतना एक अन्य स्तर पर वहाँ दिखाई देती है, जहाँ वे शोषण का प्रतिकार करने का समर्थन करते हैं। वे कहते हैं कि यदि कोई हमारे साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार करे तो नैतिकता का तकाजा युद्ध करना ही है न कि अनैतिकता को स्वीकार करना-

    "छीनता हो स्वत्व कोई और तू
    त्याग तप से काम ले, यह पाप है"

    संघर्ष के आह्वान के साथ दिनकर जी ने प्राचीन भारतीय आदर्शों एवं मूल्यों की स्थापना के माध्यम से भी राष्ट्रीय जागरण व राष्ट्रीय गौरव की भावनाओं को जगाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।

    दिनकर जी की राष्ट्रीय चेतना संकीर्ण नहीं है। यह न केवल ब्रिटिश राज्य का विरोध करने वाली है अपितु स्वतंत्रता के बाद भी जनता के सामाजिक-आर्थिक शोषण के विरुद्ध आवाज़ उठाने वाली है। कवि ने ‘दिल्ली’, ‘नीम के पत्ते’, ‘परशुराम की प्रतिज्ञा’ में स्वतंत्रता-उपरांत जनजीवन में व्याप्त आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक विषमताओं का चित्रण किया है-

    "सकल देश में हालाहल है, दिल्ली में हाला है।
    दिल्ली में रोशनी, शेष भारत में अंधियारा है।"

    इस प्रकार यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि दिनकर जी के यहाँ राष्ट्रीय चेतना उसी स्तर पर व्यक्त हुई है जो उन्हें भारतेन्दु, गुप्त जी की परंपरा में स्थान दिलवाती है।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2