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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    क्या वास्तव में केरल की आपदा गाडगिल के पश्चिमी घाट संबंधी दिशा-निर्देशों की अनदेखी का परिणाम है? गाडगिल समिति की अनुशंसाओं के परिप्रेक्ष्य में अपने उत्तर की पुष्टि कीजिये।

    05 Sep, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आपदा प्रबंधन

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा

    • प्रभावी भूमिका में केरल की आपदा के संदर्भ में गाडगिल समिति के सुझावों को संक्षेप में लिखें।
    • तार्किक तथा संतुलित विषय-वस्तु में गाडगिल समिति की अनुशंसाओं को स्पष्ट करते हुए तत्कालीन सरकार द्वारा इसे नकारने की चर्चा करें।
    • प्रश्नानुसार संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।

    केरल की भयावह बाढ़ ने वर्ष 2011 की उस रिपोर्ट पर ध्यानाकर्षित किया है, जिसका संबंध पश्चिमी घाटों से है। उल्लेखनीय है कि यह अरब सागर तट से संलग्न पारिस्थितिकी और जैव विविधता को संरक्षित करने के लिये सिफारिशों का एक सेट है। दरअसल, इस रिपोर्ट को तैयार करने वाले मुख्य लेखक, पुणे स्थित पारिस्थितिक विज्ञानी माधव गाडगिल ने सार्वजनिक रूप से तर्क दिया है कि संबंधित राज्य सरकारों द्वारा यदि रिपोर्ट के सुझावों को लागू किया गया होता तो केरल में आपदा का स्तर इतना गंभीर नहीं होता।

    गाडगिल समिति की पश्चिमी घाट से संबंधित प्रमुख अनुशंसाएँ निम्नलिखित हैं :

    • इस पूरे क्षेत्र में आनुवंशिक रूप से संशोधित खेती पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिये।
    • तीन साल में प्लास्टिक बैगों का चरणबद्ध निपटान होना चाहिये।
    • किसी नए विशेष आर्थिक क्षेत्र की स्थापना की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये।
    • सार्वजनिक भूमि के निजी भूमि में रूपांतरण पर प्रतिबंध और ESZ I या II में गैर-वन प्रयोजनों के लिये वन भूमि को नुकसान पहुँचाए जाने पर प्रतिबंध।
    • ESZ I के तहत किसी नए बांध को बनाए जाने की अनुमति नहीं होनी चाहिये।
    • ESZ I में किसी नए थर्मल पावर प्लांट या बड़े पैमाने पर पवन ऊर्जा परियोजनाओं को अनुमति नहीं दी जानी चाहिये।
    • ESZ I या II क्षेत्रों में किसी नए प्रदूषणकारी उद्योग की स्थापना तथा रेलवे लाइन या प्रमुख सड़कों को बनाए जाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये।
    • इन क्षेत्रों में पर्यटन को लेकर सख्त विनियमन होना चाहिये।
    • बांधों, खानों, पर्यटन, आवास जैसी सभी नई परियोजनाओं के लिये संचयी प्रभाव मूल्यांकन होना चाहिये।
    • इसके अलावा समिति ने इस क्षेत्र में इन गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिये एक पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी प्राधिकरण बनाए जाने का प्रस्ताव भी दिया।

    गाडगिल समिति ने कृषि क्षेत्रों में कीटनाशकों और जीन संवर्द्धित बीजों के उपयोग पर रोक लगाने से लेकर पनबिजली परियोजनाओं को हतोत्साहित करने और वृक्षारोपण की बजाय प्राकृतिक वानिकी को प्रोत्साहन देने की सिफारिशें की थीं। इसके अलावा 20,000 वर्ग मीटर से अधिक बड़ी इमारतों के निर्माण पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने की बात कही। पनबिजली परियोजनाओं के बारे में समिति ने नदियों में पर्याप्त जल प्रवाह और परियोजनाओं में अंतराल की भी कठिन शर्तें तय की थीं। गाडगिल कमेटी ने कहा कि कैचमेंट एरिया में अतिक्रमण और वनों के कम होने से कई जलाशयों में सिल्ट जमा हो गई थी। इडुक्की बांध इसका उदाहरण है जिसकी वज़ह से केरल में सबसे ज़्यादा तबाही मची है। उन्होंने कहा है कि केरल के अलावा उत्तराखंड में हो रहा निर्माण भी चिंता का विषय है।

    गौरतलब है कि राज्य में विरोध के चलते केरल सरकार ने माधव गाडगिल समिति की रिपोर्ट को सिरे से नकार दिया था और पर्यावरण को संरक्षित करने का कोई प्रयास नहीं किया। केरल में आई बाढ़ से ठीक एक महीने पहले जुलाई में एक सरकारी रिपोर्ट में चेतावनी दी गई थी कि यह राज्य जल संसाधनों के प्रबंधन के मामले में दक्षिण भारतीय राज्यों में सबसे खराब स्तर पर है। इस अध्ययन में हिमालय से सटे राज्यों को छोड़कर 42 अंकों के साथ केरल को 12वाँ स्थान मिला था। इस सूची में शीर्ष तीन राज्य गुजरात, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश हैं।

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