आधे-अधूरे के महत्त्व पर प्रकाश डालिये। (2014, प्रथम प्रश्न-पत्र, 7c)
05 Jan, 2018 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यमोहन राकेश हिन्दी नाट्य परंपरा के शिखर पुरुष हैं। उनका आधे-अधूरे नाटक उनकी प्रसिद्धि का आधार है। इस नाटक में राकेश ने संवेदना व शिल्प के स्तर पर कुछ ऐसी नई संभावनाएँ और प्रयोग प्रस्तुत किये जिससे इसका महत्त्व आज भी बना हुआ है।
इस नाटक में आज के कठोर यथार्थ की सीधी व सपाट अभिव्यक्ति है और दूसरे उनके अनुकूल आम आदमी की बोलचाल की भाषा का सृजनात्मक इस्तेमाल।
महेंद्रनाथ व सावित्री के माध्यम से मोहन राकेश ने स्त्री-पुरुष संबंध और दांपत्य संबंध के खोखलेपन तथा पारिवारिक विघटन की जीवन स्थितियों को दर्शाया है। एक नाटक कई स्तरों पर संकेत देता है। यह एक साथ पारिवारिक विघटन, मानवीय संबंधों में दरार, यौन विकृतियों एवं द्वंद्व को समेटता चलता है
शिल्प की दृष्टि से भी हिन्दी साहित्य में इसका अत्यंत महत्त्व है। एक ही अभिनेता से पाँच भूमिकाएँ कराने का प्रयोग किया है। प्रस्तावना का प्रयोग करते हुए परंपरा को नए रूप में प्रस्तुत किया है।
इसी प्रकार आधे-अधूरे की नाट्य भाषा को मोहन राकेश की बड़ी उपलब्धि के रूप में रेखांकित किया गया है। इसमें उन्होंने हरकत भरी नाट्य भाषा, मौन अंतराल, बीज शब्द, प्रतीकात्मकता आदि का साथ प्रयोग किया है।
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि यह हिन्दी नाटक की प्रचलित धारा से बहुत भिन्न नाटक है। वस्तुतः आधे-अधूरे हिन्दी नाटक को वास्तविक अर्थ में समसामयिक युग का प्रतिबिंब बनाने वाला नाटक है।