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प्रश्न :
जयशंकर प्रसाद की सौंदर्य चेतना। (2014, प्रथम प्रश्न-पत्र, 5b)
28 Dec, 2017 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यउत्तर :
हिन्दी साहित्य में छायावादी सौंदर्य चेतना कई विशिष्टताएँ धारण करती हैं और प्रसाद के यहाँ हम छायावादी सौंदर्य चेतना का प्रतिनिधि रूप देख सकते हैं। ‘झरना’, ‘लहर’, ‘आँसू’ व ‘कामायनी’ के आधार पर उनकी सौंदर्य चेतना के मुख्य तत्त्वों का उद्घाटन किया जा सकता है।
छायावाद के अन्य कवियों की भाँति प्रसाद के यहाँ भी सौंदर्य चेतना की अभिव्यिक्ति कई स्तरों पर दिखती है। सुंदरता जीवन के सुखात्मक पक्षों में भी है और दुखात्मक पक्षों में भी इसी प्रकार, इसमें प्रकृति भी सुंदर है, मानव भी, नारी भी और हृदय में उठने वाले भाव भी, परंतु मानव सौंदर्य सर्वोच्च स्तर पर है।
प्रसाद के यहाँ सौंदर्य के भाव पक्ष को केंद्रीय महत्त्व दिया गया है। नारी का सौंदर्य भी उन्हें सुंदर भावों की अभिव्यक्ति ही प्रतीत होता है। प्रसाद कामायनी में लिखते हैं-"हृदय की अनुकृति बाह्य उदार, एक लंबी काया उन्मुक्त"
प्रसाद के यहाँ जो नारी सौंदर्य प्रस्तुत है उसमें दिखावट नहीं बल्कि गूढ़ सौंदर्य है। नग्नता व अश्लीलता नहीं बल्कि संकोच व लज्जा है। नारी के सौंदर्य हेतु जिन उपमानों का प्रयोग किया गया है उनमें उत्तेजना के स्थान पर श्रद्धा जैसे भाव पैदा होते हैं-
"नारी तुम केवल श्रद्धा हो"
प्रसाद के यहाँ नारी व मानव सौंदर्य के अलावा प्रकृति के अनुपम सौंदर्य के भी दर्शन होते हैं। यहाँ भी प्रसाद छायावादी सौंदर्य चेतना का प्रतिनिधित्त्व करते हैं। प्रसाद प्रकृति के प्रति गहरी भावुकता प्रकट करते हुए लिखते हैं-
"प्रकृति के यौवन का शृंगार, करेंगे कभी न बासी फूल
मिटेंगे वे आकर अति शीघ्र, आह उत्सुक है उनकी धूल"प्रसाद के यहाँ प्रकृति कई बार तो इतनी सुंदर हो जाती है कि उसके आगे नारी व मानव सौंदर्य भी फीका नज़र आता है। यही सौंदर्य चेतना निराला व पंत के यहाँ दिखाई देती है। प्रकृति के कण-कण में सौंदर्य के दर्शन प्रसाद ने किये हैं-
"समरस थे जड़ या चेतन सुंदर साकार बना था
चेतनता एक विलसती, आनंद अखंड घना था"समग्र रूप में कहा जा सकता है कि प्रसाद की सौंदर्य चेतना ऐसे दृष्टिकोण का प्रतिपादन करती है जहाँ सौंदर्य की सारी स्थूलताएँ नष्ट हो जाती हैं और उसके सूक्ष्म पक्ष उभरने लगते हैं।
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