घनानंद की काव्यगत विशेषताएँ। (2014, प्रथम प्रश्न-पत्र, 5a)
27 Dec, 2017 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यघनानंद रीतिकालीन रीतिमुक्त काव्यधारा के शिखर पुरुष हैं। हिन्दी साहित्य में ये ‘प्रेम की पीर’ के कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनका साहित्य कई संवेदनात्मक व शैल्पिक विशिष्टताओं को धारण करता है।
संवेदनात्मक विशेषताएँ
“दूसरों के लिये किराए पर आँसू बहाने वालों के बीच यह एक ऐसा कवि है जो सचमुच अपनी पीड़ा में ही रो रहा हैं।”
"ये वियोग शृंगार के प्रधान कवि हैं।"
"अति सुधो सनेह को मारग है जहँ नेकु सयानप बांक नहीं"
"मेरी रूप अगाधे राधे, राधे, राधे, राधे, राधे
तेरी मिलिवे को ब्रजमोहन, बहुत जतन हैं साधे"
शिल्पगत विशेषताएँ
विरोधाभास अलंकार- "उजरनि बसी है हमारी अँखियन देखो"
श्लेष अलंकार- "तुम कौन धौं पाटी पढ़े हो लला,
मन लेहु पै देहु छंटाक नहीं"
इस प्रकार स्पष्ट है कि घनानंद के यहाँ संवेदना व शिल्प दोनों स्तरों पर प्रयोगशीलता, सहजता व मौलिकता के दर्शन होते हैं।