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प्रश्न :
घनानंद की काव्यगत विशेषताएँ। (2014, प्रथम प्रश्न-पत्र, 5a)
27 Dec, 2017 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यउत्तर :
घनानंद रीतिकालीन रीतिमुक्त काव्यधारा के शिखर पुरुष हैं। हिन्दी साहित्य में ये ‘प्रेम की पीर’ के कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनका साहित्य कई संवेदनात्मक व शैल्पिक विशिष्टताओं को धारण करता है।
संवेदनात्मक विशेषताएँ
- इनका काव्य गहरी अनुभूतियों का काव्य है। इनकी अनुभूति कृत्रिम नहीं बल्कि स्वअर्जित अनुभवों से युक्त है। इसी संदर्भ में दिनकर लिखते हैं-
“दूसरों के लिये किराए पर आँसू बहाने वालों के बीच यह एक ऐसा कवि है जो सचमुच अपनी पीड़ा में ही रो रहा हैं।”
- घनानंद मूलतः वियोग के कवि हैं। सुजान के प्रति जो इन्होंने विरह भोगा है वह इनके काव्य का मूल भाव है। शुक्ल ने लिखा है
"ये वियोग शृंगार के प्रधान कवि हैं।"
- इनका शृंगार वर्णन अत्यंत गहरा व एकनिष्ठता से युक्त है। सुजान के रूप-सौंदर्य, लज्जा, व्यवहार आदि का अत्यंत मार्मिकता के साथ अंकन किया है। इनका काव्य प्रेम की एकनिष्ठता की प्रस्थापना करता है-
"अति सुधो सनेह को मारग है जहँ नेकु सयानप बांक नहीं"- इनका लौकिक प्रेम वर्णन अंत में अलौकिक रूप प्राप्त कर लेता है। सुजान के प्रति जो लौकिक प्रेम था वह कृष्ण-राधा के प्रति अलौकिक स्तर पर व्यक्त होने लगा-
"मेरी रूप अगाधे राधे, राधे, राधे, राधे, राधे
तेरी मिलिवे को ब्रजमोहन, बहुत जतन हैं साधे"शिल्पगत विशेषताएँ
- बिहारी सहित लगभग सभी कवियों ने ब्रज को अरबी, फारसी व अन्य स्थानीय शब्दावली से मिश्रित कर दिया है, वहीं घनानंद ने शुद्ध ब्रज का प्रयोग किया है। यह शुद्धता शब्द निर्माण व चयन के स्तर पर भी है।
- शब्द शक्तियों के प्रयोग की दृष्टि से घनानंद का काव्य उत्कृष्ट है। लक्षणा व व्यंजना का बड़ा ही सटीक व सादा प्रयोग किया है। इसी प्रकार मुहावरों व लोकोक्तियों का प्रयोग भी द्रष्टव्य है।
- घनानंद ने अलंकारों का प्रयोग अन्य रीतिकालीन कवियों की भाँति चमत्कार प्रदर्शन हेतु नहीं बल्कि अपने भावों को व्यक्त करने हेतु किया है-
विरोधाभास अलंकार- "उजरनि बसी है हमारी अँखियन देखो"
श्लेष अलंकार- "तुम कौन धौं पाटी पढ़े हो लला,
मन लेहु पै देहु छंटाक नहीं"इस प्रकार स्पष्ट है कि घनानंद के यहाँ संवेदना व शिल्प दोनों स्तरों पर प्रयोगशीलता, सहजता व मौलिकता के दर्शन होते हैं।
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