हिंदी की समृद्धि में उसकी बोलियों के योगदान का आकलन करें। (2014, प्रथम प्रश्न-पत्र, 4b)
26 Dec, 2017 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यपिछले 1000 वर्षों के विकास के परिणामस्वरूप आज हिंदी जिस मानक स्वरूप को प्राप्त कर सकी है उसके विकास में यद्यपि सभी बोलियों का कुछ-न-कुछ योगदान अवश्य रहा है, किंतु मुख्य रूप से अवधी, खड़ी व ब्रज के योगदान को स्वीकार किया जा सकता है।
1. ध्वनि संरचना के स्तर पर योगदान
(क) खड़ी बोली में ‘ऐ’ तथा ‘औ’ का प्रयोग सामान्य स्वरों के रूप में होता है, जबकि अवधी का प्रयोग संध्यक्षर के रूप में होता है। आधुनिक हिंदी ने इस संबंध में ब्रजभाषा के प्रयोग को स्वीकार किया है।उदाहरण-
(ख) खड़ी बोली में आदि अक्षर के लोप होने की प्रवृत्ति है, जबकि अवधी व ब्रज में नहीं। आधुनिक हिंदी ने ब्रज व अवधी के मिश्रित रूप को अपनाया है, जैसे-
(ग) खड़ी बोली में ‘ण’ ध्वनि का प्रयोग अत्यधिक मात्रा में होता है जबकि ब्रज और अवधी में ‘ण’ को ‘न’ करने की प्रवृत्ति दिखाई देती है। आधुनिक हिंदी ने अवधी व ब्रज के प्रभाव को स्वीकार किया है। उदाहरण-
2. लिंग व्यवस्थाः खड़ी बोली में स्त्रीलिंग बनाने हेतु ‘अन’ ‘आनी’ व ‘ई’ प्रत्ययों का प्रयोग किया जाता, जबकि अवधी में ‘इन’ का। मानक हिंदी में अवधी के प्रयोग को स्वीकार किया गया है। उदाहरण-
3. वचन व्यवस्थाः खड़ी बोली के जो नियम एकवचन व बहुवचन से संबंधित हैं, वे प्रायः मानक हिंदी में स्वीकार किये गए हैं, जैसे-
4. आधुनिक हिंदी में सर्वनामों पर खड़ी बोली व विशेषणों पर प्रायः ब्रज का प्रभाव है।
5. कारकीय परसर्गः खड़ी बोली में कर्त्ता और कर्म दोनों कारकों के साथ ‘ने’ का प्रयोग होता है जबकि ब्रजभाषा में ‘ने’ का प्रयोग केवल कर्त्ता कारक के रूप में होता है। मानक हिंदी में ब्रजभाषा का प्रभाव स्पष्ट दिखता है।
6. मानक हिंदी में मूल शब्दावली चार प्रकार की है- तत्सम, तद्भव, देशज तथा विदेशज। मानक हिंदी का देशज व तद्भव शब्द भंडार मुख्य रूप से ब्रज व अवधी से स्वीकार किया गया है।