"हिंदी में वैज्ञानिक लेखन की स्थिति असंतोषजनक है।" इस कथन का परीक्षण कीजिये। (2014, प्रथम प्रश्न-पत्र, 4a)
23 Dec, 2017 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यवर्तमान समय में किसी भी भाषा के विकास का एक महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि उसमें तकनीकी व वैज्ञानिक लेखन कितना हुआ है? हिंदी के बारे में वर्तमान में एक धारणा यह बन गई है कि हिंदी में वैज्ञानिक विषयों पर पुस्तकों के लिये आधारभूत सामग्री की कमी है और हिंदी आदि भारतीय भाषाएँ आधुनिक ज्ञान-विज्ञान को अभिव्यक्त करने में असमर्थ हैं।
वास्तव में यह धारणा निराधार, असत्य व भ्रामक है, क्योंकि हिंदी सहित सभी भारतीय भाषाओं में सब प्रकार की प्रगतिपरक संस्कृति तथा ज्ञान-विज्ञान को सहज और गहन दोनों रूपों में अभिव्यक्त और संप्रेषित करने की संपूर्ण क्षमता विद्यमान है।
हिंदी में वैज्ञानिक लेखन की परंपरा लगभग दो सौ साल पुरानी है। तकनीकी विषयों पर लिखने वालों के लिये शब्द संग्रह का प्रणयन सर्वप्रथम लल्लुजी लाल ने किया। इसी क्रम में आगे चलकर पं. लक्ष्मीधर मिश्र ने गणित, गति विद्या, वायुमंडल विज्ञान, प्राकृतिक भूगोल आदि विषयों पर अनेक पुस्तकें लिखीं। इसी प्रकार 1914 में ‘विज्ञान पत्रिका’ के प्रकाशन ने वैज्ञानिक लेखन को नई ऊँचाइयाँ प्रदान की। वैज्ञानिक लेखन में डॉ. रघुवीर ने भी उल्लेखनीय योगदान दिया, इन्होंने हज़ारों की संख्या में वैज्ञानिक व तकनीकी शब्दावली व निर्माण किया।
हिंदी के वैज्ञानिक लेखन में गुणाकर मुले व जयंत विष्णु नार्लीकर ने भी उल्लेखनीय योगदान दिया। गुणाकर मुले हिंदी के प्रथम वैज्ञानिक लेखक कहे जा सकते हैं, जिन्होंने ‘कंप्यूटर क्या है’, ‘आपेक्षिकता सिद्धांत क्या है?’ ‘भारतीय विज्ञान की कहानी’ आदि पुस्तकें लिखकर हिंदी का उपकार किया।
इसी तरह जयंत विष्णु नार्लीकर ने ‘ब्रह्मांड की यात्रा’, ‘वायरस’, ‘विज्ञान, मानव और ब्रह्मांड’, ‘धूमकेतु’ आदि वैज्ञानिक पुस्तकें लिखकर हिंदी के वैज्ञानिक लेखन को और अधिक विस्तृत आधार प्रदान किया।
इसमें संदेह नहीं कि आज वैज्ञानिक शब्दावली और अभिव्यक्तियों की दृष्टि से हिंदी अत्यंत समृद्ध है। इतने पर भी आज वैज्ञानिक विषयों पर हिंदी में लेखन बहुत ही कम और अपर्याप्त है। इसका कारण भाषा की असमर्थता नहीं बल्कि वैज्ञानिकों का इस दिशा में रुझान न होना है।