रहीम की कविता की मार्मिकता के प्रमुख कारण। (2014, प्रथम प्रश्न-पत्र, 1e)
14 Dec, 2017 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यरहीम हिन्दी साहित्य के उन कवियों में शुमार किये जाते हैं जिनकी कविता उसके मर्म के लिये जानी जाती है। यही कारण है कि रहीम सूर व तुलसी की भाँति जन-जन में अत्यंत लोकप्रिय हुए। रहीम की कविता की मार्मिकता हेतु उत्तरदायी कारणों का उद्घाटन कई स्तरों पर किया जा सकता है।
रहीम ने अपने अनुभवों को सरल और सहज शैली में मार्मिक रूप से अभिव्यक्त किया है। गहरी-से-गहरी बात भी उन्होंने बड़ी सरलता से सीधी-सादी भाषा में कह दी-
“तरुवर फल नहीं खात हैं, सरवर पियहिं न पान।
कवि रहीम पर काज हित, संपत्ति सुचहिं सुजान।।”
इनका काव्य इनके सहज उद्गारों की अभिव्यक्ति है। इन उद्गारों में इनका दीर्घकालीन अनुभव निहित है। ये सच्चे व संवेदनशील हृदय के कवि थे। जीवन में आने वाली कटु-मधुर परिस्थितियों ने इनके हृदय-पट पर जो बहुविद् अनुभूति रेखाएँ अंकित कर दी थीं, उन्हीं के अकृत्रिमता में इनके काव्य की रमणीयता का रहस्य निहित है।
रहीम के दोहों की खूबी यह भी है कि उनमें तेज़ धार है और गज़ब का पैनापन भी, तभी तो वे एकबारगी दिलो-दिमाग को झकझोर देते हैं। उनके दोहों में नीतिपरक बातों के साथ-साथ ज़िंदगी के चटक रंग भी शृंगार के रूप में दिखाई देते हैं-
"रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो छिटकाय
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ जाए"
रहीम की कविता की मार्मिकता का एक कारण यह भी है कि इन्होंने लोक-प्रचलित सहज सरल जनभाषा में दोहे जैसा छंद रचा। उन्होंने ब्रज भाषा, पूर्वी, अवधी और खड़ी बोली को अपनी काव्य भाषा बनाया, किंतु ब्रज भाषा उनकी मुख्य शैली थी जो अत्यंत सरस व मार्मिक बन पड़ी।