हिंदी में वैज्ञानिक लेखन की वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालिये। (2013, प्रथम प्रश्न-पत्र, 4 ख)
29 Apr, 2019 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यहिंदी में वैज्ञानिक और तकनीकी लेखन की परंपरा लगभग दो सौ साल पुरानी है और यह भी सत्य है कि हिंदी भाषा में सब प्रकार की प्रगतिपरक संस्कृति तथा ज्ञान-विज्ञान को सहज और गहन दोनों रूपों में अभिव्यक्त करने एवं संप्रेषित करने की संपूर्ण क्षमता विद्यमान है।
इसी संदर्भ में वर्तमान में हिंदी में वैज्ञानिक लेखन हेतु कई प्रयास हुए हैं जिनमें गुणाकर मुले व जयंत विष्णु नार्लीकर के प्रयास उल्लेखनीय हैं।
गुणाकर मुले ने विज्ञान के गूढ़ रहस्यों को समझाने के लिये अपने लेखन को समर्पित कर दिया। NCERT की पुस्तकों के निर्माण में उनका विशिष्ट योगदान रहा है। उनकी प्रमुख रचनाएँ- ‘ब्रह्मांड परिचय’, ‘आकाश दर्शन’, ‘अंतरिक्ष यात्रा’, ‘कैसी होगी 21वीं सदी’, ‘कंप्यूटर क्या है’ तथा ‘आपेक्षिकता का सिद्धांत क्या है?’ आदि।
इसी प्रकार, जयंत विष्णु नार्लीकर प्रसिद्ध भारतीय भौतिक विज्ञानी हैं जिन्होंने हिंदी में अनेक वैज्ञानिक पुस्तकें लिखीं। इन्होंने ‘ब्रह्मांड की कुछ झलकें’, ‘ब्रह्मांड की यात्रा’, ‘वायरस’, ‘भारत की विज्ञान यात्रा’, ‘विज्ञान, मानव और ब्रह्मांड’, ‘धूमकेतु’ तथा तारों की जीवनगाथा आदि पुस्तकें हिंदी में लिखीं।
इसमें संदेह नहीं कि आज वैज्ञानिक शब्दावली और अभिव्यक्तियों की दृष्टि से हिंदी अत्यंत समृद्ध है। इतने पर भी आज वैज्ञानिक विषयों पर हिंदी में लेखन बहुत ही कम और अपर्याप्त है।
इस सबका यह कारण नहीं है कि भाषा में ऐसी क्षमता या समर्थता नहीं है बल्कि इसका कारण यह है कि वैज्ञानिकों में इस दिशा में रुझान का अभाव है। इसका निराकरण तभी संभव है जब एक तो शिक्षा के माध्यम के रूप में भारतीय भाषाओं को अपनाया जाए तथा दूसरे, वैज्ञानिकों को हिंदी में बोलने और लिखने के लिये प्रेरित किया जाए।
यदि ऐसा होता है तो निश्चय ही हिंदी के माध्यम से वैज्ञानिक चेतना भारत के जन-जन तक पहुँच सकती है।