राष्ट्रभाषा हिंदी के आंदोलन में सेठ गोविंद दास पर विचार कीजिये। (2013, प्रथम प्रश्न-पत्र, 4 क)
07 Dec, 2017 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यसेठ गोविंददास के हिंदी भाषा को प्रतिस्थापित करने के योगदान को उनकी इन पंक्तियों के माभ्यम से अधिक अच्छे तरीके से समझा जा सकता है- "जब हम अपना जीवन जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पित कर दें तब हम हिंदी प्रेमी कहे जा सकते हैं।"
सन् 1916 में बीस वर्ष की अवस्था में उन्होंने जबलपुर में ‘शारदा भवन’ नामक पुस्तकालय स्थापित कर हिंदी आंदोलन में भाग लेना शुरू कर दिया।
उन्होंने जबलपुर से ‘शारदा’, ‘लोकमत’ तथा ‘जयहिंद’ पत्रों की शुरुआत कर जन-जन में हिंदी के प्रति प्रेम जगाने और साहित्यिक परिवेश बनाने का अनुप्रेरक प्रयास किया।
सन् 1927 में उन्होंने कौंसिल ऑफ स्टेट में सर्वप्रथम हिंदी भाषा के प्रश्न को उठाया। उसके पहले केंद्रीय व्यवस्थापिका सभा अथवा प्रांतीय विधानसभाओं में यह प्रश्न उठा ही नहीं था।
संविधान सभा में हिंदी और हिंदुस्तानी को लेकर उठे विवाद को शांत करने में सेठ गोविंददास का विशेष महत्त्व रहा है। उन्होंने हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करने के लिये अपने दल के व्हिप तक का संसद में उल्लंघन कर दिया था।
इसी प्रकार, राष्ट्रभाषा हिंदी को सम्मान जनक स्थान दिलाने के लिये 1968 में देशव्यापी आंदोलन चलाया था और इस हेतु वे पूरे भारत का भ्रमण कर रहे थे।
अंत में यह कहा जा सकता है कि हिंदी के प्रसार के साथ इसे राजभाषा के प्रतिष्ठित पद पर सुशोभित करवाने में सेठ गोविंद दास की अविस्मरणीय भूमिका है।