हिंदी की तकनीकी शब्दावली के उपयोग में आने वाली कठिनाइयों पर प्रकाश डालिये। (2013, प्रथम प्रश्न-पत्र, 3 ग)
उत्तर :
पिछले 50 वर्षों में, विशेषतः वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग के गठन के बाद पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण के क्षेत्र में तीव्र गति से विकास हुआ है, किंतु अभी भी तकनीकी शब्दावली के उपयोग से संबंधित अनेक कठिनाइयाँ विद्यमान हैं-
- विभिन्न विचारधाराओं ने अपने-अपने तरीके से अनुवाद प्रस्तुत किये हैं जिससे वैविध्य एवं जटिलताएँ पैदा हो गई हैं, जैसे टेलीप्रिंटर हेतु ‘दूर मुद्रक’, ‘तार लेखी’ व ‘टेली प्रिंटर’ शब्द प्रचलित हैं।
- एक समस्या यह है कि बहुत से ऐसे शब्द बनाए गए हैं जो अपनी जटिलता के कारण नितांत अप्रचलित हैं, जैसे- कंप्यूटर हेतु ‘संगणक’, ट्रेन हेतु ‘लौहपथगामिनी’ इत्यादि।
- तीसरी समस्या समन्वय के अभाव की है। उदाहरण के लिये डायरेक्टर के लिये निर्देशक, निदेशक व संचालक का प्रयोग तथा लेक्चरर के लिये प्राध्यापक, प्रवक्ता व व्याख्याता का प्रयोग द्रष्टव्य है। इससे द्वैधीकरण की समस्या उत्पन्न हुई है।
- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में परिवर्तनों की द्रुत गति इस समस्या को और अधिक जटिल बना देती है। जब तक हम कुछ शब्दों को अनुवाद कर प्रचलन में लाने का प्रयास करते हैं तब तक अनेक नए शब्द सामने आ जाते हैं।
कुल मिलाकर यह समस्या अत्यंत जटिल है। यदि हम दृढ़ इच्छाशक्ति से काम करें एवं सामान्यतः अंतर्राष्ट्रीय शब्दावली को हिंदी व्याकरण से सुसंगत बनाते हुए स्वीकार करें तो संभव है कि हिंदी आधुनिक ज्ञान-विज्ञान की सफल भाषा बन जाए।