पूर्वी हिंदी का क्षेत्र पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ तक विस्तृत है। इसके अंतर्गत तीन बोलियाँ शामिल की जाती हैं- अवधी, बघेली छत्तीसगढ़ी। इनमें से अवधी व बघेली का विवेचन इस प्रकार किया जा सकता है-
अवधी- अवधी अवध की बोली है। इस बोली का क्षेत्र लखनऊ, फैज़ाबाद, सीतापुर, सुल्तानपुर व रायबरेली तक फैला है। भक्तिकाव्य की दो प्रमुख धाराएँ- सूफी काव्यधारा तथा रामभक्ति काव्यधारा इसी बोली में रचित हैं। अवधी की भाषागत विशेषताएँ इस प्रकार हैं
- अवधी में हिंदी की प्रायः सभी ध्वनियाँ मिलती हैं, किन्तु ‘ण’ का प्रयोग ‘न’ ‘ड़’ का प्रयोग ‘र’ और ‘ब’ का प्रयोग ‘ब’ के रूप में विशिष्ट है।
- अवधी में उकारांतता की प्रवृत्ति है, जैसे- रामू, दीनू इत्यादि।
- पुल्लिंग से स्त्रीलिंग के निर्माण हेतु शब्द के अंत में ई, इनि, इनी, आनी, नी तथा इया जैसे प्रत्यय लगते हैं।
बघेली- बघेली बघेलखंड की बोली है। यह रीवा, जबलपुर, मंडला तथा बालाघाट ज़िलों में बोली जाती है। अवधी और बघेली में इतनी समानताएँ हैं कि कुछ विद्वान उसे अवधी की उपबोली मानते हैं। बघेली की भाषिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं
- बघेली में ‘व’ के स्थान पर ‘ब’ का अत्यधिक प्रयोग।
- कर्म और संप्रदान के लिये ‘कः’ तथा करण व अपादान के लिये ‘कार’ परसर्गों का प्रयोग।
- ‘ए’ और ‘ओ’ ध्वनियों का उच्चारण करते हुए बघेली में ‘य’ और ‘व’ ध्वनियों का मिश्रण करने की प्रवृत्ति है।