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प्रश्न :
दक्खिनी हिंदी की विशेषताएँ । (2013, प्रथम प्रश्न-पत्र, 1 ख)
30 Nov, 2017 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यउत्तर :
दक्खिनी हिंदी पश्चिमी हिंदी उपभाषा की एक प्रमुख बोली है जो कुछ ऐतिहासिक-सांस्कृतिक संयोगों के कारण भौगोलिक दृष्टि से पश्चिमी हिंदी के मूल क्षेत्र से अलग है। इसी का परिणाम है कि कई स्तरों पर दक्खिनी हिंदी विशिष्ट है।
ध्वनि- दक्खिनी हिंदी की यदि ध्वनि संबंधी विशेषताओं पर गौर करें तो यह स्पष्ट होता है कि इसमें खड़ी बोली के सभी स्वर और व्यंजन दिखाई देते हैं। साथ ही, इस बोली में महाप्राण ध्वनियों का अल्पप्राणीकरण (मुझे-मुजे), अल्पप्राण ध्वनियों का महाप्राणीकरण (पलक-पलख), दिखाई देता है। कहीं-कहीं सघोष व्यंजनों का अघोषीकरण हो जाता है, जैसे- खूबसूरत-खपसूरत।
व्याकरणिक विशेषताएँ- सर्वनाम व्यवस्था के अंतर्गत उत्तम पुरुष हेतु ‘मेरेकूँ’, ‘हमन’, ‘मंज’ तथा ‘मुज’ का प्रयोग विशिष्ट है। स्त्रीलिंग के विशेषण विशेष्य के अनुसार पूर्णतः विकारी हैं जो खड़ी बोली से अलग दक्खिनी हिंदी महत्त्वपूर्ण विशेषता है। उदाहरण के लिये-‘जम्हाई लेती लड़की-जम्हाईयाँ लेतियाँ लड़कियाँ।’
शब्दावली- दक्खिनी हिंदी में आरंभिक काल में खड़ी बोली की शब्दावली ही सर्वाधिक प्रचलित रही। वहीं बाद में इसके अंतर्गत फारसीकरण की प्रवृत्ति बढ़ती गई। इसके अतिरिक्त, मराठी, तेलुगू और कन्नड़ के स्थानीय शब्द भी सीमित मात्रा में शामिल होते गए।
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