मध्यकाल में काव्य भाषा के रूप में अवधी का विकास। (2013, प्रथम प्रश्न-पत्र, 1 ख)
29 Nov, 2017 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यभाषा के रूप में अवधी का पहला स्पष्ट उल्लेख अमीर खुसरो की रचना खालिकबारी में मिलता है। रोडा कृत ‘राउलबेल’ व दामोदर पंडित कृत ‘उक्ति-व्यक्ति प्रकरण’ में अवधी के प्रयोग से स्पष्ट होता है कि अवधी एक भाषा के रूप में 13वीं सदी में स्थापित हो चुकी थी।
मूल प्रश्न है कि अवधी के मध्यकाल में एक काव्य-भाषा के रूप में स्थापित होने के पीछे कौन से उत्तरदायी कारक थे, और इसका स्वरूप कैसा था? अवधी की स्थापना के संबंध में पहला सुयोग यह हुआ कि सूफी कवियों ने अपने प्रेमाख्यानों की रचना में इसका प्रयोग किया। मुल्ला दाऊद की ‘चन्दायन’ ने एक ही झटके में अवधी को लोकभाषा के स्तर से उठाकर काव्यभाषा के रूप में स्थापित कर दिया। इसी परंपरा में कुतुबन की ‘मृगावती’ और जायसी की ‘पद्मावत’ है।
सूफी कवियों की अवधी में लोकभाषा की मिठास है, लोकजीवन के शब्दों का सुंदर प्रयोग किया गया है। इसके अतिरिक्त बिंब योजना व अप्रस्तुत योजना ने इस भाषा को चरम स्तर तक पहुँचा दिया।
इसी प्रकार, मध्यकाल में अवधी के विकास हेतु एक और सुयोग हुआ। भक्तिकाल की रामभक्ति काव्यधारा वस्तुतः अवधी में ही पुष्पित-पल्लवित हुई। तुलसी की कृतियों में अवधी ने नए आयामों को छुआ। तुलसी आदि की अवधी सूफियों की अवधी से अलग है। यहाँ तत्सम शब्दों का प्रचुर प्रयोग किया गया है। तुलसी के हाथों में पड़कर यह भाषा नाद सौंदर्य व आलंकारिता से युक्त हुई। शुक्ल ने तुलसी को अनुप्रास का बादशाह इसी संदर्भ में कहा।
तुलसी के बाद विशाल रामकाव्य परंपरा काव्यभाषा के स्तर पर धीरे-धीरे अवधी से दूर होकर ब्रजभाषा के साथ जुड़ने लगी।