देवनागरी लिपि के विकास की संक्षिप्त रूपरेखा। (2013, प्रथम प्रश्न-पत्र, 1 क)
28 Nov, 2017 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यभारत में लिपि के विकास की परंपरा में ब्राह्मी लिपि को प्रस्थान बिन्दु माना जाता है। इसी की परंपरा में आगे चलकर देवनागरी का विकास हुआ। ब्राह्मी लिपि के दो रूप प्रचलित रहे हैं- दक्षिणी ब्राह्मी और उत्तरी ब्राह्मी। उत्तरी ब्राह्मी से गुप्त और गुप्त लिपि से देवनागरी का विकास हुआ।
स्वाधीनता आंदोलन में हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त होने के बाद लिपि के विकास व मानकीकरण हेतु कई व्यक्तिगत एवं संस्थागत प्रयास हुए। सर्वप्रथम बाल गंगाधर तिलक ने ‘केसरी फॉन्ट’ तैयार किया। आगे चलकर सावरकर बंधुओं ने बारहखड़ी तैयार की, गोरखनाथ ने मात्रा व्यवस्था में सुधार किया। डॉ. श्यामसुंदर दास ने अनुस्वार के प्रयोग को व्यापक बनाकर देवनागरी के सरलीकरण के प्रयास किये।
देवनागरी के विकास में अनेक संस्थागत प्रयासों की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण रही है। 1935 में हिंदी साहित्य सम्मेलन ने नागरी लिपि सुधार समिति के माध्यम से बारहखड़ी और शिरोरेखा से संबंधित सुधार किये। इसी प्रकार, 1947 में नरेन्द्र देव की अध्यक्षता में गठित एक समिति ने बारहखड़ी, मात्रा व्यवस्था, अनुस्वार व अनुनासिक से संबंधित महत्त्वपूर्ण सुझाव दिये।
देवनागरी लिपि के विकास हेतु भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने कई स्तरों पर प्रयास किये हैं। सन् 1966 में मानक देवनागरी वर्णमाला प्रकाशित की गई, 1967 में ‘हिंदी वर्तनी का मानकीकरण’ का प्रकाशन हुआ।