डॉ. रामविलास शर्मा के आलोचनात्मक विवेक पर एक निबंध लिखिये।(2013, प्रथम प्रश्न-पत्र, 8 क)
27 Nov, 2017 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यडॉ. रामविलास शर्मा का हिन्दी समीक्षा में ‘प्रगतिवादी समीक्षा के पितामह’ के रूप में महत्त्व स्वीकार किया गया है, उनकी आलोचना का क्षेत्र न केवल विषय की दृष्टि से बल्कि कार्य की दृष्टि से भी अत्यधिक विस्तृत है।
शर्मा मूलतः एक मार्क्सवादी समीक्षक हैं, किंतु उन्होंने अपने सृजनात्मक विवेक से मार्क्सवाद का एक प्रगतिशील संस्करण तैयार किया है। वे आर्थिक कारणों के साथ-साथ सामाजिक कारणों को भी महत्त्व देते हैं।
वे साहित्य को अर्थव्यवस्था, भाषा, समाज, भूगोल से बनने वाली जातीय मानसिकता से जोड़कर देखते हैं। उर्वशी की समीक्षा करते हुए प्रगतिशील आंदोलन के लोकवादी स्वरूप के भीतर रस सिद्धांत को स्वीकार कर लेते हैं।
डॉ. शर्मा ने उन रचनाकारों के महत्त्व की स्थापना की जो किसी-न-किसी रूप में साहित्य की जनवादी परंपरा से जुड़े हुए थे। प्रेमचंद, भारतेन्दु, द्विवेदी, निराला, तुलसी आदि को प्रतिष्ठित करने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान है।
शर्मा जी ने आलोचना में साम्यवादी आदर्श को हिन्दी में ‘जातीय संदर्भ’ में स्थापित करने का प्रयास किया। उनके अनुसार भारतीय सामाजिक संरचना में यदि क्रांतिकारी परिवर्तन लाना है तो उसके लिये उपराष्ट्रीयताओं का विकास ज़रूरी है। इसी जातीय दृष्टि के आधार पर तुलसी को हिन्दी जातीय स्मृति का सबसे बड़ा कवि माना व भारतेन्दु-द्विवेदी युग को हिन्दी क्षेत्र का नवजागरण कहा।
डॉ. शर्मा के आलोचनात्मक विवेक का सर्वोच्च स्तर वहाँ दिखाई देता है, जहाँ वे निराला के साहित्य की समीक्षा कर रहे होते हैं। यह हिन्दी समीक्षा का दुर्लभ बिन्दु है जहाँ व्यक्तित्व व कृतित्व एक-दूसरे में घुल-मिल गए हैं।
समग्र रूप में कहा जा सकता है कि विस्तार और गहराई की दृष्टि से उनका आलोचना कर्म अप्रतिम है और साथ ही वे मौलिक चिंतन तथा लोकबद्ध मान्यताओं के कारण प्रगतिशील समीक्षा के पितामह बन जाते हैं।