‘अकहानी आंदोलन’ के स्वरूप को स्पष्ट करो। (2013, प्रथम प्रश्न-पत्र, 7 ग)
25 Nov, 2017 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यहिन्दी में नई कहानी आंदोलन के बाद 1960 के दशक में फ्राँस के एंटी स्टोरी मूवमेंट से प्रभावित ‘अकहानी आंदोलन’ मुख्यधारा में आया। इस आंदोलन की कहानियों में जीवन के प्रति अस्वीकार का जो भाव है वह अकविता के जैसा ही है। सभी मूल्यों में गहरी अनास्था प्रकट करती यह ‘कहानी-धारा’ अजनबीपन एवं निरर्थकता बोध को प्रश्रय देती है।
अकहानी आंदोलन का विशिष्ट स्वरूप उसकी कई विशेषताओं से निर्मित हुआ है, जैसे- इन कहानियों में जीवन-मूल्यों के प्रति तिरस्कार का भाव है जिससे आत्मपीड़न, ऊब, अकेलापन, अजनबीपन तथा विसंगति का चित्रण दिखाई देता है।
यहाँ परंपरा का पूर्ण नकार है। शिल्प के स्तर पर भी और संवेदना के स्तर पर भी। गंगा प्रसाद विमल की ‘प्रश्नचिह्न’ व दूधनाथ सिंह की ‘रीछ’ इसी प्रकार की कहानियाँ हैं। यहाँ अंतरंगता व आत्मीयता की जगह संबंधों में घुटन, तनाव व नफरत का समावेश हो गया है।
अकहानी अतिशय आधुनिकता पर ज़ोर देती है और इसी कारण वह समाज से कट जाती है। यह ‘संबंधहीनता’ तथा ‘संबंधाभाव’ की स्थितियों को उभारती है। इसी प्रकार यहाँ यौन उन्मुक्तता, समलैंगिक संपर्क व पशु संपर्क से संबंधित कहानियाँ लिखी गई हैं।
शिल्प के स्तर पर देखें तो भी नज़र आता है कि यहाँ भी यह कहानी विशिष्ट स्वरूप धारण करती है। यहाँ पुराने के प्रति अस्वीकार व नए के प्रति विरोध का भाव दिखाई देता है। सच्चाई यह है कि यह एक शिल्पहीन आंदोलन है। अकहानी के पात्र प्रतीक रूप में स्थिति का संकेत देते हैं, कई जगह पात्रों के नाम भी नहीं होते।
इसी प्रकार अकहानी आंदोलन में फैंटेसी, डायरी, मोनोलॉग, संस्मरण, आत्मप्रलाप तथा विधाओं की विशेषताएँ समाविष्ट हैं। समग्र रूप में यह कहा जा सकता है कि नई कहानी के बाद अकहानी ने कहानी विधा को नई दशा व दिशा प्रदान की।