समानुभूति से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकारों की चर्चा करते हुए सहानुभूति से इसके अंतर को स्पष्ट कीजिये।
04 Aug, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नसमानुभूति की निश्चित परिभाषा देना संभव नहीं है क्योंकि विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने इसे अलग-अलग स्तर पर परिभाषित किया है। इसकी एक सामान्य परिभाषा यह हो सकती है कि “किसी व्यक्ति में किसी अन्य व्यक्ति, अन्य प्राणी, या किसी काल्पनिक चरित्र की मनःस्थिति को सटीक रूप में समझने की क्षमता समानुभूति कहलाती है।”
कुछ अन्य मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि समानुभूति सिर्फ दूसरों की मनःस्थिति को समझने तक ही सीमित नहीं है बल्कि उन्हीं भावनाओं को उस स्तर पर महसूस करने का नाम है जिस स्तर पर उन भावनाओं को मूल व्यक्ति ने महसूस किया था। इसका चरम रूप वहाँ दिखाई देता है जहाँ व्यक्ति की चेतना में ‘स्व’ तथा ‘पर’ का अंतर मिटने लगता है।
समानुभूति के प्रकार: समानुभूति को ‘संज्ञानात्मक समानुभूति’ तथा ‘भावनात्मक समानुभूति’ में बाँटा गया है। संज्ञानात्मक समानुभूति को पुनः ‘परिप्रेक्ष्य ग्रहण’ तथा ‘कल्पना’ में विभाजित किया गया है। परिप्रेक्ष्य ग्रहण किसी अन्य व्यक्ति के व्यवहार को समझने की क्षमता है, जबकि कल्पना किसी काल्पनिक चरित्र की परिस्थितियों को समझने की क्षमता है। भावनात्मक समानुभूति को भी दो भागों यथा- ‘समानुभूतिक चिंता’ और ‘समानुभूतिक तनाव’ में बाँटा जाता है। समानुभूतिक चिंता में व्यक्ति की भावनाएँ उत्तेजित होती हैं। वह चाहने लगता है कि पीड़ित व्यक्ति की स्थिति में सुधार हो और अगर वह किसी तरह का सहयोग करने की स्थिति में होता है तो पीड़ित व्यक्ति को सहयोग भी करता है। समानुभूतिक तनाव में तीव्रता का स्तर और भी अधिक होता है। यह तीव्रता इतनी अधिक होती है कि व्यक्ति का सामान्य जीवन-यापन भी कठिन हो जाता है। समानुभूतिक तनाव के लाभ कम और हानियाँ ज़्यादा हैं।
समानुभूति और सहानुभूति में अंतर: समानुभूति और सहानुभूति में अंतर इस बात से तय होता है कि हम समानुभूति का क्या अर्थ लेते हैं? अगर समानुभूति को सिर्फ संज्ञानात्मक स्तर पर लें तो सहानुभूति उससे अगला स्तर है जहाँ व्यक्ति दूसरे की पीड़ा को देखकर दुखी हो जाता है और चाहता है कि उस व्यक्ति की पीड़ा दूर हो जाए। दूसरी ओर अगर समानुभूति का अर्थ यह लिया जाए कि इसमें दूसरे व्यक्ति की मनःस्थिति को उस स्तर पर अनुभव किया जाता है जहाँ ‘स्व’ तथा ‘पर’ का अंतर मिट जाता है तो समानुभूति, सहानुभूति का अगला स्तर होता है क्योंकि सहानुभूति में ‘स्व’ और ‘पर’ का अंतर निश्चित तौर पर बना रहता है। आजकल यह धारणा अधिक प्रचलित है कि समानुभूति एक व्यापक अवधारणा है जिसकी एक विशेष अवस्था को सहानुभूति कहा जाना चाहिये।
अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि अगर समानुभूति सिर्फ संज्ञानात्मक स्तर पर है तो उसे सहानुभूति नहीं कहा जाएगा किंतु अगर उसमें भावनात्मक तत्त्व भी शामिल हो गया हो तो वह सहानुभूति बन जाएगी।