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प्रश्न :
मोहन राकेश के नाट्य शिल्प पर एक संक्षिप्त निबंध लिखिये। (2013, प्रथम प्रश्न-पत्र, 6 ग)
22 Nov, 2017 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यउत्तर :
मोहन राकेश स्वातंत्र्योत्तर नाटक विधा के सर्वोच्च शिखर हैं। उनके नाटक संवेदना व शिल्प की दृष्टि से कई विशिष्टताओं व मौलिकताओं से युक्त हैं। यदि उनके नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’, आधे अधूरे व ‘लहरों के राजहंस’ के आधार पर उनकी शैल्पिक विशिष्टताओं का उल्लेख करें तो नज़र आता है कि हिन्दी साहित्य को उनकी बड़ी देन है।
भाषा का सार्थक व सटीक प्रयोग इनके शिल्प का सबसे मज़बूत पक्ष है। भाषा प्रसंगानुकूल है, स्थिति व पात्रों के अनुसार यह बदलती है। आषाढ़ का एक दिन जैसे नाटकों में जहाँ तत्सम प्रधान है, वहीं आधे-अधूरे में यह तद्भव प्रधान है।
मोहन राकेश ऐसे नाटककार हैं जो गद्य में भी काव्य भाषा का प्रभाव पैदा कर देते हैं। नाटकों में प्रतीकों, बिंबों और लय के प्रयोग से लयात्मकता के गुण का समावेश हुआ है। इसी प्रकार, मोहन राकेश के नाटकों में नाट्य भाषा का बड़ा ही सटीक व सुंदर प्रयोग हुआ है। पात्रों की मनोदशा, रोमांटिक वातावरण व चरित्रों की शारीरिक चेष्टाओं को दिखाने के लिये ध्वनियों व प्राकृतिक वातावरण का प्रयोग इसी नाट्य भाषा के उदाहरण हैं।
शैलियों विशिष्टताओं को मंचीयता के माध्यम से यदि हम विश्लेषित करें तो यह कहना सही होगा कि यहाँ राकेश ने कई संभावनाएँ पैदा कीं। पर्याप्त रंग संकेत, सरल दृश्य योजना, चुस्त व छोटे संवाद, चरित्रों की संतुलित संख्या, एक ही चरित्र से पाँच-पाँच भूमिकाएँ करवा लेना इसी प्रकार के उदाहरण हैं।
मोहन राकेश की चरित्र योजना आधुनिक भावबोध व अस्तित्ववादी विचारधारा से गहरे रूप में प्रभावित है। मध्यवर्गीय चरित्रों की प्रधानता, नायकत्व व खलनायकत्व का मिश्रण, नारी चरित्रों का केंद्र में होना, संतुलित संख्या आदि इनकी चरित्र योजना को विशिष्ट बनाते हैं।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि मोहन राकेश के नाटक शिल्प की दृष्टि से न केवल कई विशिष्टताएँ धारण करते हैं बल्कि नई संभावनाएँ भी जगाते हैं।
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