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प्रश्न :
जायसी की कविता और उसमें ध्वनित लोकचित्र। (2013, प्रथम प्रश्न-पत्र, 6 क)
21 Nov, 2017 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यउत्तर :
सूर, तुलसी आदि भक्त कवियों के यहाँ लोकजीवन के तत्त्व बहुत गहरे रूप में समाविष्ट हैं, किंतु जायसी के ‘पद्मावत’ में लोकतत्त्व का समावेश अत्यंत गहरे और विशिष्ट रूप में है।
पद्मावत के संदर्भ में यदि जायसी के काव्य में उपस्थित लोकतत्त्व की खोज की जाए तो इस संबंध में सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि इन्होंने अवधी के जिस रूप का प्रयोग किया है, वह लोकसंस्कृति व लोकप्रचलन के शब्दों से युक्त है न कि तुलसी की तरह तत्सम प्रधान। ‘महवट नीरू,’ ‘दवंगरा’ जैसी शब्दावली का प्रयोग इसी का उदाहरण है-
"नैन चुवहिं जस महवट नीरू"
भारतीय लोकसंस्कृति, त्योहारों, उत्सवों व गीतों से युक्त है। जायसी ने अपने काव्य में फाग, दीवारी, बसंत जैसे उत्सवों व धमार, झूमक आदि लोकनृत्यों का वर्णन किया है। ‘पद्मावत’ में बारात आगमन का जो चित्र प्रस्तुत किया गया है, वह लोकसंस्कृति का एक अच्छा उदाहरण है-
"पद्मावति धौराहर चढ़ि। दहुँ कस रवि जेहि कहँ ससि गढ़ि"
जायसी के काव्य में उपस्थित लोकतत्त्व का एक पक्ष यह भी है कि पारिवारिक संबंधों के माध्यम से यह दिखलाया है कि परिवार की मर्यादाएँ कैसे नारियों के लिये अत्यंत कठिन सिद्ध होती हैं। नारियों का दर्द इस लोकगीत के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है-
"ए रानी मन देखु बिचारी, एहि नैहर रहना दिन चारी"
इसी प्रकार, यदि पद्मावत के सिंहलदीप वर्णन पर नज़र डाली जाए तो परिलक्षित होता है कि यहाँ लोकजीवन के चित्रों को बहुत खूबसूरती के साथ उकेरा गया है। पानी भरती हुई औरतों, हाट के जुआरी लोगों व वेश्याओं के मुहल्ले के अनेक चित्र प्रस्तुत किये गए हैं।
जायसी के लोकतत्त्व के संबंध में सबसे बड़ा उदाहरण तो यह दिया जा सकता है कि इनकी कथाओं का कथानक लोककथाओं से गढ़ा गया है। पद्मावत में पद्मिनी व हीरामन की लोककथा के साथ-साथ लोकप्रचलित नियमों, जैसे- शिव-पार्वती, इन्द्र-कर्ण प्रसंग, लंकादहन प्रसंग व राम-सीता प्रसंगों के माध्यम से लोकतत्त्व का सुंदर संश्लेषण किया गया है।
स्पष्ट है कि जायसी की लोकजीवन पर गहरी पकड़ थी। एक मुस्लिम कवि होते हुए भी इन्होंने हिन्दू संस्कृति के लोकतत्त्वों का समावेश कर तुलसी व बुद्ध की समन्वय की अवधारणा को मज़बूत किया।
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