रहीम की कविता के मर्म का उद्घाटन कीजिये एवं उसकी लोकप्रियता के कारणों का निर्देश दीजिये। (UPSC 2013, प्रथम प्रश्न-पत्र, 2 क)
13 Nov, 2017 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यरहीम हिन्दी साहित्य में भक्तिकाल और रीतिकाल को जोड़ने वाले कवियों की श्रेणी में प्रमुख हैं। उनके साहित्य का संवेदनागत विस्तार अत्यंत विस्तृत है। मुस्लिम कवि होते हुए भी उन्होंने अपने साहित्य में कृष्ण भक्ति की सरस धारा प्रवाहित की।
रहीम का साहित्य नीति, भक्ति व शृंगार की त्रिवेणी है, जहाँ उन्होंने अपने काव्य में वैयक्तिक एवं लोक अनुभवों को ही स्थान दिया। रहीम के साहित्य में कृष्ण भक्ति की अविरल धारा बही है, जहाँ रासलीला व ग्राम्य संस्कृति के दर्शन होते हैं। इसी प्रकार उन्होंने नीतिपरक दोहों के माध्यम से अपने लोक अनुभव प्रकट किये-
"रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय।
टूटे से फिर ना जुरे-जुरे गाँठ पड़ जाए।।"
रहीम के दोहों की खूबी है कि उनमें तेज़ धार है और गज़ब का पैनापन भी। तभी तो वे एक बारगी दिलो-दिमाग को झकझोर देते हैं। उनके नीतिपरक दोहों में जहाँ अपने-पराए, ऊँच-नीच तथा सही-गलत की समझ है, वहीं ज़िंदगी के चटक रंग भी शृंगार के रूप में दिखाई देते हैं।
उपरोक्त काव्यगत संवेदना के संदर्भ में ही यदि रहीम की लोकप्रियता के कारणों को खोजें तो उन्हें इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
1. जहाँ अन्य समकालीन कवि भक्ति या शृंगार वर्णन तक सीमित थे, वहीं रहीम ने अपने काव्य में जीवन के सभी पक्षों का समावेश किया। परिणाम यह हुआ कि उनका साहित्य अधिक विस्तृत सामाजिक आधार प्राप्त कर पाया।
2. रहीम की लोकप्रियता का एक बड़ा कारण उनकी जनभाषा पर पकड़ से संबंधित है। रहीम की रचनाएँ अत्यंत सरस हैं और यह सरसता ब्रज भाषा की सरसता है।
3. रहीम मूलतः कृष्ण भक्त थे और कृष्ण उस समय उत्तर-भारत में धार्मिक निष्ठा के प्रमुख केंद्र थे। सूर व मीरा की लोकप्रियता के साथ-साथ रहीम भी कृष्ण भक्त के रूप में आमजन में अत्यंत लोकप्रिय हुए।
4. रहीम ने अपने काव्य में लोक अनुभवों व नीतिपरक बातों को शामिल कर आमजन की समस्याओं व संवेदनाओं को अधिक सहज तरीके से उभारा। यह भी उनकी लोकप्रियता का एक बड़ा कारण था।
5. उनकी लोकप्रियता का संबंध उनके शैल्पिक वैशिष्टय से गहरे रूप से जुड़ा है। उन्होंने तत्कालीन तीन प्रधान लोक भाषाओं- अवधी, ब्रज व खड़ी को अपने काव्य का आधार बनाया। साथ ही, दोहे व सोरठे जैसे लोकप्रिय छंदों के माध्यम से अपनी बात कही-
"रहिमन ओछे नरन सो, बैर भली न प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत।।"
रहीम की लोकप्रियता के आधार इतने मज़बूत हैं कि आज भी आमजन में ये कबीर व सूर से किसी भी स्तर पर कम लोकप्रिय नहीं हैं।