- फ़िल्टर करें :
- भूगोल
- इतिहास
- संस्कृति
- भारतीय समाज
-
प्रश्न :
1919 के ‘पेरिस शांति सम्मेलन’ का स्वरूप, 1815 की वियना कॉन्ग्रेस की अपेक्षा अधिक प्रतिनिधि बोधक था तथा इस सम्मेलन की अर्जित सफलता में समय, स्थान, प्रतिनिधि संगठन एवं सम्मेलन की कार्यवाही प्रक्रिया की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। टिप्पणी करें। (250 शब्द)
26 Apr, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
प्रश्न विच्छेद
♦ वियना कॉन्ग्रेस की तुलना में पेरिस शांति सम्मेलन कैसे ज़्यादा प्रतिनिधिबोधक था?
♦ पेरिस शांति सम्मेलन की अर्जित सफलता में समय, स्थान, प्रतिनिधि संगठन एवं सम्मेलन की कार्यवाही का उल्लेख करना है।
हल करने का दृष्टिकोण
♦ दोनों सम्मेलनों का संक्षिप्त में परिचय दें।
♦ पेरिस शांति सम्मेलन के अधिक प्रतिनिधिबोधक होने को स्पष्ट करें।
♦ पेरिस शांति सम्मेलन की सफलता में समय, स्थान, प्रतिनिधि संगठन एवं कार्यवाही का उल्लेख करें।
♦ इस सम्मेलन की सफलता एवं असफलता को संक्षेप में बताते हुए निष्कर्ष लिखें।
1815 के वियना कॉन्ग्रेस की प्रतिक्रियावादी अवधारणा के तहत स्वतंत्रता, समानता एवं राष्ट्रवाद जैसे प्रगतिशील विचारों को रोकने तथा पुन: राजवंशीय शासन की स्थापना पर बल दिया। वहीं, पेरिस शांति सम्मेलन प्रथम विश्व युद्ध के बाद शांति स्थापित करने के उद्देश्य से विजयी राष्ट्रों का सम्मेलन था।- वियना कॉन्ग्रेस की अपेक्षा पेरिस शांति सम्मेलन का स्वरूप अधिक प्रतिनिधिबोधक था। क्योंकि इसमें राजाओं की जगह देशों का प्रतिनिधित्व चुने हुए प्रतिनिधि (प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति) कर रहे थे। बेल्जियम का राजा एल्बर्ट इसका अपवाद था।
ये प्रतिनिधि विश्व की तीन-चौथाई जनसंख्या का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। जहाँ तक समय का प्रश्न है, यह सम्मेलन जर्मनी के साथ किये गए युद्ध विराम समझौते के नौ सप्ताह बाद रखा गया। इसके पीछे ब्रिटेन एवं अमेरिका की आंतरिक राजनीतिक स्थिति का ख्याल रखा गया। - ब्रिटेन के प्रधानमंत्री सम्मेलन से पूर्व संसदीय चुनाव चाहते थे तो अमेरिकी राष्ट्रपति विल्सन ‘कॉन्ग्रेस’ में संघीय राष्ट्र का संदेश पारित करवाना चाहते थे।
- सम्मेलन को पहले वियना में करवाने का विचार किया लेकिन राष्ट्रपति विल्सन के सुझाव के आधार पर पेरिस को प्राथमिकता दी गई। पेरिस में भारी संख्या में अमेरिकी सेनाएँ तैनात थीं। इसके अतिरिक्त, यह स्थान सेडान युद्ध के बाद हुए सम्मेलन का भी गवाह था, जहाँ पर वर्साय के महल में जर्मन साम्राज्य की घोषणा की गई थी।
- पेरिस शांति सम्मेलन में विजयी राष्ट्रों के साथ संबद्ध शक्तियाँ भी इसमें प्रतिनिधित्व कर रही थी। अंतिम समझौते में हिस्सेदारी करने के लिये युद्ध के अंतिम दिनों में शामिल होने वाले देशों को संबद्ध शक्तियाँ कहते है। इस सम्मेलन में गैर-संबद्ध शक्तियों, रूस तथा पराजित राष्ट्रों को प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया।
- जहाँ तक कार्रवाई की बात है तो इस पर अमेरिका, ब्रिटेन एवं फ्राँस का सबसे ज़्यादा प्रभाव था। इटली विजेता राष्ट्र होते हुए भी सम्मेलन को बीच में ही छोड़कर चला गया। जर्मनी पर अपमानजनक वर्साय की संधि आरोपित की गई, जो आगे चलकर द्वितीय विश्व युद्ध का कारण बनी।
उपर्युक्त कारणों से पेरिस शांति सम्मेलन तात्कालिक रूप से सफल हुआ और, यूरोप में शांति स्थापित हुई। लेकिन इसमेें मौजूद अंतर्निहित दोषों ने फासिस्ट शक्तियों के उदय को संभव बनाया, जिसे तुष्टीकरण की नीति नेे उर्वर भूमि प्रदान की। अंतत: इस सम्मेलन के बीस वर्ष बाद ही द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत हुई। जो इसे एक असफल सम्मेलन सिद्ध करता है।
निष्कर्षत: कह सकते है कि पेरिस शांति सम्मेलन जनप्रतिनिधियों के भाग लेने के कारण ज़्यादा प्रतिनिधि बोधक था। इसकी अर्जित सफलता में समय, स्थान, प्रतिनिधि संगठन तथा कार्यवाही प्रक्रिया की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही, लेकिन सफलता की दृष्टि से दोनों ही सम्मेलन अल्पकालिक सिद्ध हुए थे।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Print - वियना कॉन्ग्रेस की अपेक्षा पेरिस शांति सम्मेलन का स्वरूप अधिक प्रतिनिधिबोधक था। क्योंकि इसमें राजाओं की जगह देशों का प्रतिनिधित्व चुने हुए प्रतिनिधि (प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति) कर रहे थे। बेल्जियम का राजा एल्बर्ट इसका अपवाद था।