गांधी-इरविन समझौता वस्तुत: राष्ट्रीय आंदोलन की पलायनवादी मनोवृत्ति का परिचायक न होकर गांधीवादी रणनीति का एक अहम हिस्सा था, जिसे तत्कालीन राष्ट्रवादी धाराओं के अदूरदर्शी दृष्टिकोण द्वारा पहचाना न जा सका। परीक्षण करें। (250 शब्द)
24 Apr, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास
प्रश्न विच्छेद ♦ प्रश्न को समझने के लिये आप सबसे पहले इसे दो भागों में विभाजित कीजिये। (i) गांधी-इर्विन समझौते को राष्ट्रीय आंदोलन के पलायनकारी मानने का कारण। (ii) गांधीवादी रणनीति के संदर्भ में इसका मूल्याकंन। हल करने का दृष्टिकोण ♦ अब बात करते हैं इसके उत्तर की शुरुआत की। सबसे पहले गांधी-इर्विन समझौते का संक्षिप्त परिचय दीजिये। ♦ इसके बाद राष्ट्रीय आंदोलन की पलायनकारी मनोवृत्ति के कारणों का उल्लेख कीजिये। ♦ इसके बाद गांधीवादी रणनीति का मूल्यांकन कीजिये और अंत में एक सारगर्भित निष्कर्ष लिखिये। एक बात पर विशेष रूप से ध्यान दीजिये कि यह आवश्यक नहीं है कि आपका उत्तर पैराग्राफ में ही लिखा हुआ हो, आप पॉइंट टू पॉइंट लिखने का प्रयास कीजिये। परीक्षा भवन में परीक्षक का जितना ध्यान आपके उत्तर के प्रस्तुतिकरण पर होता है उतना ही ध्यान इस बात पर भी होता है कि आप कम-से-कम शब्दों में (एक अधिकारी की तरह) अपनी बात को समाप्त करें। |
5 मार्च, 1931 को हुए गांधी-इर्विन समझौते के तहत गांधी द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन को स्थगित करने तथा कॉन्ग्रेस द्वारा द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने का आश्वासन तत्कालीन वायसराय लार्ड इर्विन को दिया गया।
गांधी-इर्विन समझौते को राष्ट्रीय आंदोलन की पलायनकारी मनोवृत्ति मानने के निम्नलिखित कारण है:
परंतु, गाँधी-इर्विन समझौते को गाँधीवादी रणनीति के निम्नलिखित संदर्भों में देखे जाने की ज़रूरत है:
वस्तुत: गांधी-इर्विन समझौतो को समग्रता में देखे जाने की ज़रूरत है। इससे यह भी स्पष्ट था कि उपनिवेशी सरकार ने राष्ट्रीय आंदोलन के महत्त्व को स्वीकारा तथा उसके नेतृत्वकर्त्ताओं को बराबरी का दर्जा प्रदान किया।