स्वामी विवेकानंद के ‘दरिद्र नारायण’ के सिद्धांत की संक्षिप्त चर्चा करते हुए इसके नैतिक महत्त्व को दर्शाएँ। (250 शब्द)
17 Apr, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नदरिद्र नारायण सिद्धांत का प्रतिपादन स्वामी विवेकानंद द्वारा किया गया। इस सिद्धांत के अनुसार स्वामी विवेकानंद ने गरीबों व निशक्तजनों की सेवा को ईश्वर की सेवा व धार्मिक पुण्य कार्य के समान महत्त्वपूर्ण माना। स्वामी जी ने देश भ्रमण के क्रम में समाज के गरीब व अभावजन्य लोगों की पीड़ा को अनुभव किया और उनकी सेवा को सर्वाधिक महत्त्व दिया।
दरिद्र नारायण का यह सिद्धांत समाज के गरीब, निशक्त तथा हाशिये पर पड़े लोगों के दुख निवारण का प्रयास है। यह नि:स्वार्थ भाव से ज़रूरतमंद लोगों की सेवा कार्य को प्रेरित करता है।
वर्तमान में जब सामाजिक असमानता पहले की तुलना में काफी बढ़ी है। सामाजिक न्याय स्थापित करने में स्वामी विवेकानंद के इस सिद्धांत का महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है। ‘एकमात्र ईश्वर जिसका अस्तित्व है, एकमात्र ईश्वर जिस पर मैं विश्वास करता हूँ वह दीन-हीन व दुखी लोगों में निवास करता है और इनकी सेवा ही सच्ची ईश्वर सेवा है।’ स्वामी जी का यह कथन वर्तमान उपभोक्तावादी व व्यक्तिवादी युग में मानवता के नैतिक कर्त्तव्यों के प्रति पथ-प्रदर्शक के समान है।
स्वामी जी के इस सिद्धांत का महत्त्व इस बात में भी है कि इससे प्रेरणा प्राप्त कर कई राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय एनजीओ (NGO) व अन्य संगठन नि:स्वार्थ भाव से गरीब व लाचार लोगों के कल्याण से जुड़े हुए हैं।
स्वामी जी के ‘दरिद्र नारायण’ सिद्धांत का महत्त्व परवर्ती काल के कई महान समाज सेवक व नैतिक विचारकों ने भी स्वीकारा। इनमें हम महात्मा गांधी व मदर टेरेसा का नाम प्रमुखता से ले सकते हैं।