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प्रश्न :
सरकार को बैंकों में अपने स्वामित्व को कम करना चाहिये और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के प्रभावी विनियमन के लिये आरबीआई को अधिक शत्तियाँ देनी चाहिये। विवेचना कीजिये। (250 शब्द)
17 Apr, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थाउत्तर :
प्रश्न विच्छेद
♦ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सरकारी हिस्सेदारी कम करने के औचित्य को बताना है।
♦ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को अधिक कुशलतापूर्वक नियंत्रित करने के लिये और अधिक शक्तियाँ देने की आवश्कयता को बताना है।
हल करने का दृष्टिकोण
♦ सर्वप्रथम परिचय लिखें।
♦ बैंकों में सरकारी हिस्सेदारी कम करने के पक्ष एवं विपक्ष में तर्क दें।
♦ आरबीआई को और अधिक शक्तियाँ प्रदान करने की आवश्यकता बताते हुए अंत में निष्कर्ष लिखें।
1969 एवं 1980 में देश के सर्वांगीण विकास एवं पुनरुत्थान के लिये भारत सरकार ने बड़े वाणिज्यिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर उन्हें सरकारी नियंत्रण में ले लिया। इसके माध्यम से पिछड़े इलाकों एवं गरीब वर्गों की बैकिंग सुविधाओं तक पहुँच आसान हुई। लेकिन वर्तमान समय में पुन: बैंकों के निजीकरण की बात चल रही है।वस्तुत: सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में बढ़ती गैर-निष्पादन परिसंपत्ति (NPA) की मात्रा, दबावग्रस्त परिसंपत्तियों बढ़ते भ्रष्टाचार, तथा बेहतर प्रबंधन एवं संचालन क्षमता की समस्या आदि के कारण सरकार से बैंकों के स्वामित्व में अपनी हिस्सेदारी बेचने की बात की जा रही है। हाल ही में पीएनबी (PNB) घोटाले के बाद भारतीय उद्योग परिसंघ ने कहा कि सरकार को चरणबद्ध तरीके से अपनी हिस्सेदारी घटाकर 33 फीसदी करनी चाहिये।
लेकिन दूसरे पक्ष को देखें तो निजी बैंक भले ही तुलनात्मक रूप से बेहतर प्रतीत होते हैं, लेकिन वहाँ भी धोखाधड़ी चलती है। वहाँ भी बैड लोन की मात्रा पर्याप्त है। रिज़र्व बैंक की निजी बैंकों की परिसंपंत्ति गुणवत्ता निरीक्षण में भी यह बात सामने आई। वहीं 2008 की मंदी में अमेरिका के निजी बैंकों का दिवालिया होना यह दर्शाता है कि वे हमेशा सफल नहीं होते।
अत: सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के स्वामित्व बदलने की बजाय समस्या के समाधान के लिये निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिये:
बैंकों के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में स्वतंत्र निदेशक भेेजे जाएँ। इनकी नियुक्ति विवेक देबराय समिति की सिफारिश पर की जाए।
ऋण देने के मामले में स्पष्ट मानक तथा पारदर्शिता की व्यवस्था की जाए।
बेहतर प्रबंधन एवं कुशलतापूर्वक नियंत्रण के लिये आरबीआई को और अधिक शक्तियाँ प्रदान की जाए।
इस संदर्भ आरबीआई को निम्न अधिकार दिये जाने की आवश्यकता है-
बैंकों द्वारा दिये गए बड़े लोनों के औचित्य की जाँच करने।
खातों की जाँच का अधिकार ताकि बैंक आरबीआई को अँधेरे में रखकर एनपीए का बार-बार नवीनीकरण न कर सकें।
आरबीआई के कार्यों का और अधिक स्पष्टता एवं वैज्ञानिक तरीके से वर्गीकरण किया जाए।
इस संदर्भ में सरकार द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) को कुछ अधिकार भी प्रदान किये गए हैं, जैसे-
बैकिंग विनियमन (संसोधन) अध्यादेश, 2017 के तहत कुछ विशिष्ट दबावग्रस्त परिसंपत्तियों से जुड़े मुद्दों के निपटान के लिये इन्साल्वेंसी रेज़ोल्यूशन प्रोसेस शुरू करने का अधिकार।
गैर-निष्पादन परिसंपत्तियों की वसूली हेतु बैंकों को सलाह देने के लिये निरीक्षण समितियों एवं प्राधिकारी नियुक्त करने का अधिकार।
वस्तुत: देश की दो-तिहाई आबादी बैकिंग सेवाएँ सार्वजनिक क्षेत्र से प्राप्त कर रही है, विशेषकर निम्न आय वर्ग वाले, जैसे जन धन खाता।
अत: सरकार अपने स्वामित्व में हिस्सेदारी कम करने की बजाए उसे बेहतर प्रबंधन एवं संचालन क्षमता से युक्त करे तथा आरबीआई को और अधिक शक्तियाँ प्रदान करे।
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