इज़राइल और फिलिस्तीन के संदर्भ में भारत द्वारा ‘परंपरागत सामान्य नीति से हटकर दोनों के संदर्भ में पृथक नीति’ (de-hyphenated policy) अपनाने में भारत के समक्ष कौन-कौन सी चुनौतियाँ और संभावनाएँ हैं। हालिया द्विपक्षीय यात्राओं के आलोक में विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
13 Apr, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध
प्रश्न विच्छेद ♦ भारत द्वारा इज़राइल और फिलिस्तीन के संदर्भ में अपनाई गई ‘पृथक नीतियों’ के समक्ष चुनौतियाँ एवं संभावनाएँ। हल करने का दृष्टिकोण ♦ डी-हाइफनेटेड नीति का अनुसरण करने से भारत को लाभ की चर्चा करें। ♦ इस नीति के अनुसरण में चुनौतियों की चर्चा करें। ♦ भारत की विदेश नीति के संदर्भ में डी-हाइफनेटेड नीति का विश्लेषण करें। ♦ एक प्रभावी निष्कर्ष लिखें। |
भारत आरंभ से ही इज़रायल और फिलिस्तीन के साथ मधुर संबंध रखता है। भारत इज़रायल और फिलिस्तीन को लेकर ‘दो-राज्य समाधान’ में विश्वास रखता है। परम्परा के अनुसार भारतीय राजनेता दोनों पश्चिमी एशियाई देशों का एक साथ दौरा करते रहे हैं, किंतु जुलाई 2017 में प्रधानमंत्री मोदी इज़रायल दौरे के दौरान फिलिस्तीन नहीं गए। इज़रायल और फिलिस्तीन को लेकर भारत की इस नई नीति को कूटनीतिकारों ने डी-हाइफनेटेड नीति का नाम दिया है।
डी-हाइफनेटेड नीति भारत के लिये एक अवसर के रूप में:
यह नीति पहली बार भारत का इज़रायल के साथ प्रगाढ़ संबंध का स्पष्ट प्रबोधन है। इससे दोनों देशों के बीच कूटनीतिक गतिविधियों में तेज़ी आएगी।
इस नीति से वैश्विक समुदाय में यह संदेश गया है कि भारत पश्चिम एशिया में जारी संघर्ष के समाधान में मध्यस्ता कराने में सक्षम है।
चूँकि इज़रायल भारत के लिये सुरक्षा की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है, ऐसे में इज़रायल के साथ स्वतंत्र संबंध स्थापित करना दोनों के संबंधों को और मज़बूती प्रदान करेगा।
इस नीति के अनुपालन में भारत के लिये चुनौतियाँ:
भारत पर पूरी तरह इज़रायल के समर्थन में रहने का बार-बार आरोप लगाया जा सकता है।
चीन वैश्विक समुदाय विशेषकर अरब देशों में भारत की छवि को धूमिल करने का प्रयास कर सकता है।
भारत का फिलिस्तीन के साथ बदलते हुए संबंधों को लेकर पाकिस्तान भारत पर मुस्लिम विरोधी होने का आरोप लगा सकता है।
अरब देश इज़रायल के चिर विरोधी रहे हैं, ऐसे में भारत का अरब देशों के साथ संबंधों में तनाव आने की संभावना बनी रहेगी।
भारत की इस नई नीति को फिलिस्तीन-संबंध के चश्मे से देखना गलत होगा। वैश्विक समुदाय की आशंका के विपरीत जाकर भारत ने अमेरिका के इज़रायल स्थित अपने दूतावास को विवादित जेरूसलम में स्थापित करने के निर्णय के खिलाफ वोट किया है। यह कार्यवाही फिलिस्तीन को लेकर भारत की विदेश नीति में स्थितरता का सूचक है। प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने दोनों देशों की अलग-अलग यात्रा कर दोनों देशों के साथ अपने संबंधों को नया आयाम दिया है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास के बीच स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में छह समझौतों पर हस्ताक्षर भी हुए हैं।
गत वर्ष प्रधानमंत्री मोदी द्वारा परंपरा के विरुद्ध केवल इज़रायल की यात्रा करने से भारत पर अपने पारंपरिक रुख से विचलन का आरोप लगा। किंतु हाल ही में प्रधानमंत्री की फिलिस्तीन यात्रा ने स्पष्ट कर दिया है कि भारत अब अपने राष्ट्रीय हित के लिये दोनों देशों से स्वतंत्र संबंध स्थापित करने की नीति को अपनाएगा। यह नीति भारत के लिये तमाम चुनौतियाँ भी उत्पन्न करता है, जिसके लिये भारत को अरब देशों के साथ अपने कूटनीतिक संबंधों को और बेहतर करने की आवश्यकता है।