उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में विकासमान ‘मध्यवर्गीय चेतना’ जहाँ लोकप्रिय असंतोषों को संगठित कर राष्ट्रीय चेतना के विकास की महत्त्वपूर्ण कारक सिद्ध हुई, वहीं वायसराय लिटन की प्रतिक्रियावादी नीतियों ने इसे सशक्त बनाया। विवेचना करें। (250 शब्द)
08 Apr, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास
प्रश्न विच्छेद ♦ मध्यवर्गीय चेतना के विकास के कारण तथा लोकप्रिय असंतोष को संगठित करने के लिये इसके द्वारा किया गया प्रयास। ♦ लिटन की प्रतिक्रियावादी नीतियाँ। हल करने का दृष्टिकोण ♦ संक्षिप्त भूमिका लिखें। ♦ मध्यवर्गीय चेतना के विकास के कारण बताएँ। ♦ लोकप्रिय असंतोष को संगठित करने के लिये क्या प्रयास किये गए? ♦ लिटन की प्रतिक्रियावादी नीतियों का उल्लेख करते हुए निष्कर्ष लिखें। |
उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध तक पाश्चात्य चिंतन एवं शिक्षा के प्रचार-प्रसार के कारण एक नवीन शिक्षित भारतीय मध्यवर्ग का उदय हुआ। इसने राष्ट्रीय चेतना एवं राष्ट्रवाद की भावना को आगे बढ़ाने का काम किया।
वस्तुत: आधुनिक पाश्चात्य विचारों को अपनाने से भारतीय राजनीतिक चिंतन को एक नई दिशा प्राप्त हुई। नवशिक्षित भारतीय मध्यवर्ग पाश्चात्य उदारवादी विचारधारा के अनुरूप स्वतंत्रता, समानता एवं जनतंत्र जैसे प्रगतिशील मूल्यों के सम्पर्क में आया। इसने औपनिवेशिक शोषण के वास्तविक स्वरूप को समझकर भारतीयों को एकजुट करने का प्रयास प्रारंभ किया। इसी क्रम में 1867 में दादाभाई नौरोजी धन निकासी सिद्धांत का प्रतिपादन कर औपनिवेशिक शासन के वास्तविक चेहरे को सामने लाए।
इस नवशिक्षित मध्यवर्ग द्वारा लोकप्रिय असंतोष को संगठित करने के लिये निम्नलिखित राजनीतिक संस्थाएँ स्थापित की गईं, जैसे:
1851 में ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन का गठन। इसने उच्च वर्ग के नौकरशाहों के वेतन में कमी तथा नमक कर, आबकारी कर एवं डाक शुल्क समाप्ति जैसे लोकप्रिय मांगों को लेकर ब्रिटिश संसद को पत्र लिखा।
1866 में दादाभाई नौरोजी ने लदंन में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की स्थापना की। इसका उद्देश्य भारतीय समस्याओं से ब्रिटिश जनमत को परिचित कराना था।
1852 में बॉम्बे एसोसिएशन की स्थापना करना। इसका उद्देश्य भेदभावपूर्व सरकारी नियमों के विरुद्ध सरकार को सुझाव देना था।
इसी तरह 1875 में इंडियन लीग तथा 1876 में इंडियन एसोसिएशन जैसी संस्थाएँ स्थापित की गईं। इनका उद्देश्य राष्ट्रवाद की भावना जाग्रत कर लोगों को एकजुट करना था।
उपर्युक्त प्रयासों को लॉर्ड लिटन की निम्न प्रतिक्रियावादी नीतियों ने सशक्त बनाया, जैसे:
इंडियन सिविल परीक्षा में आयु सीमा को 21 वर्ष से घटाकर 19 वर्ष करना।
अकाल के दौरान दिल्ली दरबार का आयोजन करना।
वार्नाकुलर प्रेस एक्ट (1878) तथा शस्त्र अधिनियम (1878) आदि।
उपर्युक्त नीतियों ने भारतीयों के साथ भेदभाव को दर्शाया तथा भारतीय जन को और असंतुष्ट कर दिया। फलत: 1885 में स्थापित भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस ने उभरते हुए इस राष्ट्रीय चेतना को आगे बढ़ाया और अंतत: भारत को आज़ाद कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।