स्वतंत्रता के पश्चात् भाषाई आधार पर राज्यों के गठन हेतु कई प्रयास हुए। इन प्रयासों ने भारतीय अखंडता और एकता पर भी प्रभाव डाला। स्पष्ट करें। (250 शब्द)
27 Mar, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास(प्रश्न विच्छेद – यहाँ प्रश्न के दो भाग हैं। अतः उत्तर की व्याख्या में पहले भाषाई आधार पर राज्यों के गठन के प्रयास और तत्संबंधित प्रक्रियाओं पर जानकारी देंगे फिर इन प्रयासों से अखंडता और एकता पर पड़ने वाले प्रभावों पर जानकारी देंगे।)
भूमिका- गांधी जी सहित अन्य नेताओं द्वारा सामान्य तौर पर यह स्वीकार कर लिया गया था कि आजाद भारत अपनी प्रशासनिक इकाइयों के सीमा को भाषायी सिद्धांत पर निर्धारित करेगा। लेकिन आजादी के बाद राष्ट्रीय नेतृत्व में यह विचार व्यक्त किया गया कि देश की सुरक्षा, एकता और आर्थिक संपन्नता पर पहले ध्यान दिया जाना चाहिये। 1948 में एस.के.धर के नेतृत्व में बने भाषाई राज्य आयोग तथा जे.वी.पी. समिति ने भी तात्कालिक रूप से भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के विरुद्ध सलाह दी थी।
व्याख्या- भाषाई आधार पर राज्य गठन हेतु बनी समितियों के सुझाव के बाद पूरे देश में राज्यों के पुनर्गठन को लेकर व्यापक जनांदोलन शुरू हो गए, जिनमें मद्रास प्रेसीडेंसी से अलग आंध्र राज्य बनाने की मांग सबसे प्रबल थी। अक्तूबर 1952 में पोट्टी श्रीरामलू की आमरण अनशन के चलते मृत्यु हो गई, इसके पश्चात् हुई हिंसा के कारण सरकार को 1953 में आंध्र प्रदेश के रूप में नया राज्य बनाना पड़ा। इसके बाद देश के अन्य क्षेत्रों में भी भाषाई आधार पर राज्यों की माँग जोर पकड़ने के कारण 1956 में ‘राज्य पुनर्गठन आयोग’ की स्थापना की गई। आयोग की रिपोर्ट के आधार पर वर्ष 1956 में पारित राज्य पुर्नगठन अधिनियम द्वारा भाषायी आधार पर 14 राज्यों तथा 6 केंद्रशासित प्रदेशों का गठन हुआ।
प्रभाव- भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का कार्य कर राष्ट्रीय नेतृत्व ने राष्ट्रीय एकता के सामने उत्पन्न प्रश्न चिहन को समाप्त कर दिया जो संभवत: विघटनकारी प्रवृत्तियों को बढ़ावा दे सकता था। जहाँ भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन ने क्षेत्रीय आकांक्षाओं को पूरा किया वहीं उसने जनता की भावनाओं का भी ध्यान और मान रखा। इससे लोगों के अंदर यह भावना बलवती हुई कि स्वतंत्र भारत में उनकी ईच्छाओं, भावनाओं तथा सांस्कृतिक पहलुओं के साथ-साथ उनकी क्षेत्रीय भाषा को भी महत्त्व दिया जा रहा है। इसके अलावा यह भी महत्त्वपूर्ण है कि भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन ने देश के संघीय ढाँचे को प्रभावित नहीं किया तथा केंद्र एवं राज्य के संबंध पूर्ववत बने रहे।
हाल ही के वर्षों में इसमें एक नवीन प्रवृत्ति देखने को मिली, जो राज्य भाषा के आधार पर निर्मित हुये थे उनमें भी पुन: राज्य गठन की माँग जोर पकड़ने लगी है। इसी कड़ी में नवीनतम राज्य तेलगांना का निर्माण हुआ।
निष्कर्ष- राज्यों के पुनर्गठन ने भारत की एकता को कमजोर नहीं किया बल्कि संपूर्ण रूप से देखा जाए तो मज़बूत ही किया है परंतु यह विभिन्न राज्यों के मध्य सभी विवादों और समस्याओं का समाधान नहीं कर पाया। विभिन्न राज्यों के बीच सीमा विवाद, भाषाई अल्पसंख्यकों की समस्या के साथ-साथ नदी जल बँटवारा की समस्या जैसे प्रश्न अभी भी अनसुलझे पड़े हैं।