नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    ‘राष्ट्रवाद की बिकृत होती परिभाषा ने विश्व के समक्ष नई समस्याएँ पैदा कर दी हैं।’ टिप्पणी कीजिये। (250 शब्द)

    23 Mar, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    भूमिका एवं व्याख्या- राष्ट्रवाद के अर्थ को लेकर व्यापक चर्चाएँ होती रही हैं, हालाँकि देखा जाए तो राष्ट्रवाद एक आंतरिक भाव है, जो देश-विशेष के लोगों को एकता के सूत्र में बांधता है। आधुनिक लोकतंत्र की तरह राष्ट्रवाद भी यूरोप की ही देन है। राष्ट्रवाद के प्रतिपादक जॉन गॉटफ्रेड हर्डर थे, जिन्होंने 18वीं सदी में पहली बार इस शब्द का प्रयोग करके जर्मन राष्ट्रवाद की नींव डाली। उस समय यह सिद्धांत दिया गया कि राष्ट्र सिर्फ समान भाषा, नस्ल, धर्म या क्षेत्र से बनता है। किंतु, जब भी इस आधार पर समरूपता स्थापित करने की कोशिश की गई तो तनाव एवं उग्रता को बल मिला। जब राष्ट्रवाद की सांस्कृतिक अवधारणा को ज़ोर-ज़बरदस्ती से लागू करवाया जाता है तो यह ‘अतिराष्ट्रवाद’ या ‘अंधराष्ट्रवाद’ कहलाता है। इसका अर्थ हुआ कि राष्ट्रवाद जब चरम मूल्य बन जाता है तो सांस्कृतिक विविधता के नष्ट होने का संकट उठ खड़ा होता है। आत्मसातीकरण और एकीकरणवादी रणनीतियाँ विभिन्न उपायों द्वारा एकल राष्ट्रीय पहचान स्थापित करने की कोशिश करती हैं, जैसे-

    • संपूर्ण शक्ति को ऐसे मंचों में केंद्रित करना, जहाँ प्रभावशाली समूह बहुसंख्यक हो और जो स्थानीय या अल्पसंख्यक समूहों की स्वायत्तता को मिटाने पर आमादा हो।
    • प्रभावशाली समूह की परंपराओं पर आधारित एकीकृत कानून एवं न्याय व्यवस्था को थोपना।
    • प्रभावशाली समूह की भाषा को ही एकमात्र राजकीय ‘राष्ट्रभाषा’ के रूप में अपनाना और उसके प्रयोग को सभी सार्वजनिक संस्थाओं में अनिवार्य बना देना।
    • प्रभावशाली समूह के इतिहास, शूरवीरों और संस्कृति को सम्मान प्रदान करने वाले राज्य प्रतीकों को अपनाना।
    • राष्ट्रीय पर्व, छुट्टी या सड़कों आदि के नाम निर्धारित करते समय भी इन्हीं बातों का ध्यान रखना।
    • अल्पसंख्यक समूहों और देशज लोगों की ज़मीनें, जंगल एवं जल क्षेत्र छीनकर उन्हें ‘राष्ट्रीय संसाधन’ घोषित कर देना।

    निष्कर्ष- भारत अपनी सांस्कृतिक विविधता को मिटाकर ऐसे राष्ट्रवाद की मान्यता को ग्रहण नहीं करता है, क्योंकि हमारे देश और पश्चिमी देशों की राष्ट्र संबंधी अवधारणा में अंतर है। पश्चिम का राष्ट्रवाद एक प्रकार का बहुसंख्यकवाद है, जबकि एक राष्ट्र के रूप में भारत अपनी विविध भाषाओं, अनेक धर्मों और भिन्न-भिन्न जातीयताओं का एक समुच्चय है।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow