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प्रश्न :
बायो-एथिक्स (जैव नीतिशास्त्र) से आप क्या समझते हैं? भारत में बायो-एथिक्स से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करें। (250 शब्द)
20 Mar, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
बायो-एथिक्स (जैव-नीतिशास्त्र) जीव विज्ञान और चिकित्सा में प्रगति से उत्पन्न नैतिक मुद्दों का अध्ययन है, जीवन के जैविक पहलुओं से संबंधित नैतिक मुद्दे और उनसे संबंधित अन्य शाखाओं तथा प्रश्नों को बायो-एथिक्स में शामिल किया गया है। यह नीतिशास्त्र की वह शाखा है जिसमें गर्भपात, पशु अधिकार या इच्छामृत्यु जैसे विशिष्ट एवं विवादास्पद नैतिक मुद्दों का विश्लेषण शामिल है। यह नैतिक सिद्धांतों के ज्ञान का उपयोग करके दुविधाओं को दूर करने में मदद करता है। इस प्रकार बायो-एथिक्स की कई भूमिकाएँ हैं जिनके अंतर्गत कुछ महत्त्वपूर्ण कार्य आते हैं। जैसे- स्वास्थ्य संस्थानों में अनैतिक प्रथाओं के बारे में प्रश्न उठाना, नए और आने वाले जैव प्रौद्योगिकी के कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न होने वाली नई जैव-रासायनिक समस्याओं से मुकाबला करना और दुनिया के आर्थिक रूप से अविकसित भागों के बीच स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं, सार्वजनिक स्वास्थ्य के मुद्दों और वितरण की चुनौतियों का समाधान करना।
भारत में बायो-एथिक्स से संबंधित मुद्दे
- वैज्ञानिक अनुसंधानों में ‘स्टेम सेल अनुसंधान’ एक क्रांतिकारी प्रयास सिद्ध हुआ है। मधुमेह, हृदय रोग, रीढ़ की हड्डी में चोट, पार्किंसंस, अल्ज़ाइमर जैसे लाइलाज और अपरिवर्तनीय बीमारियों के उपचार में स्टेम कोशिकाओं से जुड़े अनुसंधानों ने पर्याप्त सकारात्मक परिणाम दिखाए हैं। स्टेम कोशिकाओं की चिकित्सा से जुड़ी बहस में सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और नैतिक मुद्दे शामिल हैं। डिज़ाइनर शिशुओं से संबंधित चिंताओं ने गंभीर जैव-नैतिक मुद्दों को उठाया है।
- आंध्र प्रदेश में लड़कियों को दी जाने वाली ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (Human Papilloma virus-HPV) वैक्सीन की डिलीवरी को लेकर लोगों में आक्रोश था। राज्य के जनजातीय विभाग ने एक आदेश दिया कि लड़कियों के माता-पिता से सहमति के लिये संपर्क करने की आवश्यकता नहीं है और आदिवासी स्कूलों के प्रिंसिपल सहमति प्रदान कर सकते हैं। माता-पिता की सहमति के बिना नाबालिग लड़कियों को वैक्सीन देना नैतिक नहीं है। कुछ अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने भी इस मुद्दे पर असहमति प्रकट की।
- ‘इच्छामृत्यु’ का मुद्दा समसामयिक रहा है। भारत में गंभीर रूप से बीमार रोगियों की इच्छामृत्यु/दया-हत्या एक विवादास्पद जैव-चिकित्सा से जुड़ा मुद्दा रहा है। चिकित्सक-सहायता प्राप्त आत्महत्या (Physician-Assisted Suicide) के समर्थकों को लगता है कि किसी व्यक्ति की स्वायत्तता का अधिकार उसे एक दर्दरहित मौत का चयन करने के लिये स्वत: ही अधिकार दे देता है। वहीं विरोधियों को लगता है कि एक व्यक्ति की मौत में एक चिकित्सक की भूमिका चिकित्सा पेश के केंद्रीय सिद्धांत का उल्लंघन करती है। उल्लेखनीय है कि हमारे यहाँ ‘निष्क्रिय इच्छामृत्यु’ की अनुमति है लेकिन सक्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति नहीं है।
- गर्भपात का सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, कानूनी और राजनीतिक संदर्भ जटिल है। यह चिकित्सा प्रौद्योगिकी में प्रगति से और जटिल हुआ है। जन्मपूर्व नैदानिक तकनीकों की एक शृंखला और लिंग आधारित पूर्व-धारणा एवं आनुवंशिकी-आधारित तकनीकों के उद्भव ने हाल ही में लिंग या अन्य ‘‘असामान्यताओं’’ के संदर्भ में भ्रूण की स्थिति जानना संभव बना दिया है, इसने महिलाओं और उनके परिवारों को चयनात्मक गर्भपात के उपाय करने के लिये प्रोत्साहित किया है। सरोगेसी और कृत्रिम गर्भाधान से जुड़े मुद्दे भी नैतिकता संबंधित सवालों से अछूते नहीं रहे हैं।
- सरकार 2013 में नैदानिक परीक्षणों के बारे में कड़े नियमों के साथ आई थी। 2014 के बाद से इन नियमों को धीरे-धीरे आसान बनाया जा रहा है। ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने नैदानिक परीक्षणों के कुछ चरणों को समाप्त करने का फैसला किया है। ये चरण उन मुद्दों से संबंधित हैं जहाँ जैव-नैतिक मुद्दों के कारण विशेष रूप से आवश्यक दवाओं को अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान, कनाडा या यूरोप में मंज़ूरी दी गई है।
निष्कर्ष: जैव-नैतिकता से जुड़े मुद्दों में वैज्ञानिक, तकनीकी, आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक कारण शामिल होते हैं और प्रत्येक स्थिति काफी अनोखी और जटिल है। आधुनिक युग में जैव-नीतिशास्त्रियों को इन सभी कारकों के प्रति संवेदनशील होना चाहिये जो आधुनिक समाज में नैतिक मूल्यों और सिद्धांतों को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और इस संबंध में भारतीय समाज और सरकार की सतर्कता वांछनीय है।
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