पंडित दीन दयाल उपाध्याय पर संक्षिप्त लेख लिखें। (250 शब्द)
18 Mar, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नपंडित दीन दयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर, 1916 को मथुरा ज़िले के नगला चन्द्रभान ग्राम में हुआ था। 7 वर्ष की अवस्था में ही माता-पिता की मृत्यु हो जाने के कारण उनका बचपन ननिहाल में बीता। इन्होंने पिलानी, आगरा और प्रयाग से अपनी शिक्षा पूरी की। स्नातक की पढ़ाई के दौरान ही वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ गए और कॉलेज छोड़ने के तुरंत बाद ही संघ प्रचारक बन गए। अपने संक्षिप्त जीवनकाल के दौरान पंडित जी ने राजनीतिक क्षेत्र, दार्शनिक क्षेत्र, पत्रकारिता एवं लेखन क्षेत्र इत्यादि में अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किये।
राजनीतक क्षेत्र - नितांत सरल और सौम्य स्वभाव के व्यक्ति होने के कारण 1951 में अखिल भारतीय जनसंघ (संस्थापक-श्यामा प्रसाद मुखर्जी) का निर्माण होने पर उन्हें संगठन मंत्री एवं उत्तर प्रदेश का महासचिव बनाया गया। कालीकट अधिवेशन, 1967 में उन्हें अखिल भारतीय जनसंघ का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया। 11 फरवरी, 1968 को एक रेल-यात्रा के दौरान, मुगलसराय के पास उनकी हत्या कर दी गई। हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा मुगलसराय जंक्शन का नाम दीनदयाल उपाध्याय स्टेशन एवं कांडला बंदरगाह का नाम दीनदयाल बंदरगाह किया गया। ग्रेटर नोएडा (उत्तर प्रदेश) में पं. डीन दयाल उपाध्याय पुरातत्व संस्थान बनाया गया है।
दार्शनिक क्षेत्र - पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने ‘एकात्म मानव’ की विचारधारा का प्रतिपादन किया। अंत्योदय, सर्वोदय, साम्यवाद जैसी विचारधाराओं के मध्य ‘मानव के हित’ और ‘मानव के सुख’ को उन्होंने अपनी विचारधारा के केंद्र में रखा और आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य ‘सामान्य मानव का सुख या उनका विचार’ माना। भारतीय संस्कृति और राष्ट्रवाद पर उनके शब्द आज भी उपयुक्त ही प्रतीत होते हैं- ‘‘भारत में रहने वाला मानव समूह एक जन हैं। उनकी जीवन प्रणाली, कला, साहित्य, दर्शन सब भारतीय संस्कृति है। इसलिये भारतीय राष्ट्रवाद का आधार यह संस्कृति है। इस संस्कृति में निष्ठा रहे तभी भारत एकात्म रहेगा।“ भारतीय सरकारी राज्यपत्र (गज़ट) इतिहास व संस्कृति संस्करण में यह स्पष्ट वर्णन है कि ‘हिंदुत्व’ और ‘हिंदूइज़्म’एक ही शब्द हैं तथा ये भारत की संस्कृति और सभ्यता के सूचक हैं।
पत्रकारिता एवं लेखन क्षेत्र - पंडित दीन दयाल उपाध्याय एक चिंतक, एक पत्रकार और एक लेखक भी थे। उनकी कुछ प्रमुख कृतियाँ हैं- भारतीय अर्थ नीति: विकास की एक दिशा, राष्ट्र जीवन की दिशा, राष्ट्र चिंतन, अखंड भारत क्यों?, पोलिटिकल डायरी (Political Diary), Two plans: Promises Performances, Prospects, सम्राट चंद्रगुप्त (नाटक), जगद्गुरु शंकराचार्य (जीवनी), एकात्म मानववाद (Integral Humanism) इत्यादि। उन्होंने लखनऊ में‘राष्ट्रधर्म प्रकाशन’ नामक एक प्रकाशन संस्थान की स्थापना पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ मिल कर की। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ मे अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने एक साप्ताहिक समाचार पत्र ‘पांचजन्य’और एक दैनिक समाचार पत्र ‘स्वदेश’शुरू किया तथा ‘राष्ट्रधर्म’ नामक मासिक पत्रिका के माध्यम से अपने सिद्धांतों को प्रतिपादित किया।
निश्चय ही दीन दयाल उपाध्याय ने अपने लेखन से राष्ट्रसेवा में अद्वितीय योगदान दिया। उनके शब्दों में; ‘‘हमारी राष्ट्रीयता का आधार भारत माता हैं, केवल भारत ही नहीं। माता शब्द हटा दीजिये तो भारत केवल ज़मीन का टुकड़ा मात्र बनकर रह जाएगा।“