सुशासन को परिभाषित करने के प्रयासों पर चर्चा करते हुए इसके जरिए समावेशी विकास से जुड़ी संभावनाओं पर प्रकाश डालिए। उपलब्ध या संभावित सुधारों का उल्लेख भी वांछनीय है। (250 शब्द)
16 Mar, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाभारतीय पौराणिक गाथाओं में भी सुशासन और सतत् विकास पर ज़ोर दिया गया है। श्रीमद्भगवद् गीता 50 सदी पुरानी कृति है, जो हमें अच्छे प्रशासन, नेतृत्व, कर्त्तव्यपरायणता और आत्ममंथन के असंख्य उदाहरण देती है, जो आधुनिक समय में भी लगातार प्रासंगिक बने हुए हैं। यहाँ तक कि कौटिल्य (दूसरी और तीसरी सदी ईसा पूर्व) अर्थशास्त्र में भी जनहित को राजा की भूमिका में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण माना गया है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी सु-राज पर बल दिया, जिसका अर्थ है, सुशासन। हाल के संदर्भ में सुशासन का महत्त्व भारतीय संविधान में स्पष्ट रूप से वर्णित है, जिसका आधार है- एक सार्वभौम, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य, जो जनता के कल्याण और कानून सम्मत शासन के लिये प्रतिबद्ध हो।
सुशासन की सटीक परिभाषा तलाशने के बीच दसवीं पंचवर्षीय योजना परिपत्र में त्रुटिपूर्ण प्रशासन के कुछ परिणामों का उल्लेख किया गया है, जिनमें अर्थव्यवस्था के लचर प्रबंधन, बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति न हो पाना, जान-माल की सुरक्षा को खतरा, समाज के कुछ वर्गों का वंचित रहना, प्रशासन तंत्र में संवदेनशीलता की कमी, पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी, न्याय मिलने में देरी और गरीबों को शासन में भागीदारी का अवसर न मिलना तथा कुल मिलाकर स्थिति में गिरावट आना शामिल है।
संयुक्त राष्ट्र में सुशासन के आठ स्तंभ बताए हैं। ये हैं- सहमति आधारित, जवाबदेह, पारदर्शी, उत्तरदायी, समान और समावेशी, प्रशावशाली और कुशल, कानून सम्मत शासन और समुचित भागीदारी। सतत् विकास लक्ष्यों में भी लक्ष्य-16 को सीधे इससे जुड़ा माना जा सकता है क्योंकि यह प्रशासन, समावेशन, भागीदारी, अधिकारों और सुरक्षा में सुधार के लिये समर्पित है।
नीति आयोग ने भारत की आज़ादी के 75वें वर्ष की विस्तृत कार्य-योजना तैयार करते हुए एक व्यापक परिपत्र सामने रखा है- ‘स्ट्रेटजी फॉर न्यू इंडिया / 75’। इसमें भी सुशासन के ज़रिये समावेशी विकास की प्राप्ति हेतु कई उपाय सुझाए गए हैं। प्रत्यक्ष लाभ अंतरण, आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम जैसे कई प्रयासों पर ज़ोर दिया गया है जो कुछ दूसरे सुधारों (लोक सेवा, कानून/न्यायिक और पुलिस सुधार) के साथ मिलकर विकास के समावेशी दृष्टिकोण को सुगम बना सकें। इसी संदर्भ में ई-प्रशासन और डिजिटल इंडिया जैसे प्रयासों पर भी सरकार की विशेष निगाह है।
संक्षेप में कहा जा सकता है कि सुशासन सरकार की सभी पहलों की बुनियादी शर्त होनी चाहिये। एक बार पूरी निष्ठा से इसे लागू किये जाने पर न केवल 2022 तक नए भारत के निर्माण का लक्ष्य बल्कि 2030 तक सतत् विकास के लक्ष्य भी प्राप्त किये जा सकते हैं।