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प्रश्न :
कार्य के नैतिक-अनैतिक होने का आधार क्या होता है? (250 शब्द)
11 Mar, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
नीतिशास्त्र की विषयवस्तु के मूल में सामान्य व्यक्ति के आचरण का मूल्यांकन है। यहाँ मूल्यांकन से तात्पर्य व्यक्ति के कार्यों के नैतिक अनैतिक होने से भी है। अत: नीतिशास्त्रियों ने विभिन्न कार्यों के संदर्भ में अपने मत रखे और यह पाया कि कार्य का नैतिक-अनैतिक होना दो आधार पर निर्भर करता है जो किसी भी परिस्थिति विशेष में देखा जा सकता है।
1. संकल्प की स्वतंत्रता (Freedom of will)
2. विकल्पों की उपस्थिति (Availability of options)
- विकल्पों की उपलब्धता होने पर शारीरिक मानसिक स्थिति की सक्षमता, निर्णय लेने की इच्छा और स्वतंत्रता को सीधे प्रभावित करती है।
- इस प्रकार लिये गए निर्णय/कर्मों का मूल्यांकन नैतिकता के परिपेक्ष्य में किया जा सकता है। बशर्ते उपलब्ध विकल्पों में नैतिकता एवं अनैतिकता दोनों के अंश उपलब्ध हों और व्यक्ति सामान्य स्थिति में हो।
- सामान्य व्यक्ति से तात्पर्य सामान्य शारीरिक-मानसिक दशा से है। विक्षिप्त, अबोध बालक, वृद्ध आदि असामान्य स्थिति के व्यक्तियों के निर्णय इसके अंतर्गत नहीं शामिल होंगे। क्योंकि इनके कर्मों के नैतिक-अनैतिक होने का मूल्यांकन आधारहीन होगा।
- वही कर्म नैतिक अनैतिक कहे जा सकते हैं। जिसका समाज पर प्रभाव पड़ता है। वैसे कर्म जिनका समाज पर प्रभाव नहीं पड़ता (नीति शून्य कार्य), किसी भी प्रकार से नैतिक अनैतिक मूल्यांकन का आधार नहीं बनते।
- नैतिकता एक व्यवस्था के रूप में भी आंकलित की जाती है किंतु कार्यों का मूल्यांकन व्यवस्था के बजाए व्यक्तिगत और सापेक्षिक दोनों स्तरों पर किया जाता है। क्योंकि नैतिकता एक अर्जित अवधारणा है और यह समाजीकरण का भाग है। अत: कार्य के नैतिक-अनैतिक होेने का आधार सापेक्ष ही प्रतीत होता है।
- कार्यों को नैतिक अनैतिक सिद्ध करने वाले अन्य निर्धारक तत्त्व-
1. कृत्य (Act) अपने आप में नैतिक/अनैतिक
2. कर्त्ता (Actor)
3. पीड़ित/लाभार्थी (Victim/Beneficiary)
4. प्रयोजनाइरादा (Intention)
5. परिस्थितियाँ (Circumstances)
6. परिणाम (Conseqences)
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