नैतिक संहिता और आचार संहिता में अन्तर स्पष्ट करें। साथ ही, उन नैतिक सिद्धांतों का उल्लेख करें जिनका अनुपालन लोकसेवकों द्वारा किये जाने का सुझाव द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने दिया है।
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा
- प्रश्न के संदर्भ में प्रभावी भूमिका प्रस्तुत करें।
- तार्किक तथा संतुलित विषय-वस्तु में नैतिक संहिता और आचार संहिता में अंतर को स्पष्ट करते हुए द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग द्वारा दिए गए सुझावों की चर्चा करें।
|
नैतिक संहिता और आचार संहिता को व्यावहारिक दृष्टि से तो पूर्णतः पृथक नहीं किया जा सकता क्योंकि दोनों का संबंध प्रशासन में नैतिकता की स्थापना से है, किन्तु, इन दोनों में सैद्धान्तिक तौर पर निम्नलिखित अन्तर हैं-
- नैतिक संहिता में नैतिक मूल्यों को शामिल किया जाता है, जबकि आचार संहिता में उन आचरणों एवं कार्यों का उल्लेख होता है जो नैतिक संहिता से सुसंगत तथा उसी पर आधारित होते हैं।
- नैतिक संहिता सामान्य एवं अमूर्त होती है, जबकि आचार संहिता विशिष्ट एवं मूर्त होती है।
- नैतिक संहिता के अन्तर्गत शासन के प्रमुख मार्गदर्शी सिद्धान्तों को रखा जाता है जबकि आचार-संहिता में स्वीकृत एवं अस्वीकृत व्यवहारों की सूचना और कार्रवाई को रखा जाता है।
- नैतिक संहिता स्थायी होती है जबकि आचार संहिता परिवर्तनशील होती है। जैसे- ‘ईमानदारी’ नैतिक-संहिता का एक पक्ष है जो सदैव यथावत् है परन्तु आचार संहिता में परिवर्तन आवश्यक है क्योंकि समय के साथ-साथ ‘आचरण’ के भिन्न-भिन्न रूप (भ्रष्टाचार, अपराध आदि) सामने आते रहते हैं।
द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने लोकसेवकों द्वारा अनुपालन किये जाने के लिये निम्नलिखित सिद्धान्तों का सुझाव दिया है-
- सत्यनिष्ठा : लोकसेवकों को निर्णय निर्माण में केवल सार्वजनिक हितों का ध्यान रखना चाहिये न कि व्यक्तिगत हितों का।
- निष्पक्षता : लोकसेवकों को अपने आधिकारिक कार्य के निष्पादन में गुण एवं अवगुणों के आधार पर निर्णय लेना चाहिये।
- प्रतिबद्धता : सार्वजनिक सेवा के प्रति लोकसेवकों को प्रतिबद्ध रहना चाहिये।
- उच्च व्यवहार : लोकसेवकों को सभी लोगों के साथ सम्मान व विनम्रता के साथ व्यवहार करना चाहिये।
- कर्त्तव्य के प्रति निष्ठा : लोकसेवकों को सदैव अपने कर्त्तव्यों एवं जिम्मेदारियों के प्रति पूर्ण लगन बनाए रखनी चाहिये।
- जवाबदेही : एक लोकसेवक को अपने निर्णयों एवं कर्त्तव्यों के प्रति जवाबदेह होना चाहिये।