- फ़िल्टर करें :
- राजव्यवस्था
- अंतर्राष्ट्रीय संबंध
- सामाजिक न्याय
-
प्रश्न :
बहुसंस्कृतिवाद ‘सलाद का कटोरा’ की धारणा का समर्थन करता है क्योंकि इसका अस्तित्व इसी पर टिका है। विभिन्न संबंधित पहलुओं को समाहित करते हुए कथन का आशय स्पष्ट करें। (250 शब्द)
08 Mar, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्यायउत्तर :
भूमिका:
सामान्य अर्थ में बहुसंस्कृतिवाद किसी देश/समाज में अलग-अलग धर्मों/सांस्कृतिक समूहों के लोगों का सह-अस्तित्व है। इस संकल्पना का जन्म 70 के दशक में अमेरिका और यूरोप में श्वेत संस्कृति के पक्ष में अन्य संस्कृतियों के समरूपीकरण के विरोध में प्रतिसांस्कृति व मानवाधिकारवादी आंदोलनों से हुआ।
विषय-वस्तु
विषय-वस्तु के पहले भाग में बहुसंस्कृतिवाद के चर्चा में आने के कारणों पर प्रकाश डालेंगे-
‘मेल्टिंग पॉट’ व ‘सलाद का कटोरा’ अमेरिका में बहुसंस्कृतिवाद के संदर्भ में दो धाराणाओं के रूप में प्रचलित हैं। ‘मेल्टिंग पॉट’ में विभिन्न संस्कृतियाँ/राष्ट्रीयताएँ अमेरिकी मूल्यों में आत्मसात् हो जाती है जबकि ‘सलाद का कटोरा’ में एक राष्ट्र के भीतर विभिन्न संस्कृतियाँ/राष्ट्रीयताएँ अपने अलग-अलग रंग रूपों के साथ अपनी पहचान बनाए रखती हैं। हम पाते हैं कि बहुसंस्कृतिवाद ‘सलाद का कटोरा’ की धारणा का समर्थन करता है क्योंकि इसका अस्तित्व इसी पर टिका है।
21वीं सदी के प्रारंभ से घटित घटनाओं की शृंखला ने पश्चिमी देशों के समाजों की बहुसांस्कृतिक बनावट के परिणामस्वरूप स्थापित शांतिपूर्ण सौहार्द्र को भंग किया है। उदाहरण के तौर पर 9/11 के ‘वर्ल्ड ट्रेड सेंटर’ पर हुआ हमला और प्रतिक्रियास्वरूप अमेरिका और उसके नाटो सहयोगियों द्वारा चलाया गया ‘आतंक विरोधी युद्ध’ जिसकी इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा ‘इस्लाम के विरूद्ध युद्ध के रूप में व्याख्या की गई। इसी तरह अमेरिका का इराक पर आक्रमण एवं 2015 में पत्रिका शार्ली हेब्दो (फ्राँस) के कार्यालय पर हमला आदि घटनाओं के परिणामस्वरूप पश्चिमी देशों के बहुसंख्यक समाज ने अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति अपनी नाराजगी प्रकट की।
इसके परिणामस्वरूप ‘बहुसंस्कृतिवाद के सिद्धांत’ की विफलता पर बहस तेज होने लगी और इन सभी देशों में धर्म एवं संस्कृत से परे एक मज़बूत राष्ट्रीय पहचान का आग्रह जोर पकड़ने लगा है। स्थानीय जनता के दबाव में डेनमार्क एवं नीदरलैण्ड ने पूर्व में अपनायी गई नीतियों को पलट दिया। देखा जाए तो मुख्य संकट विविधता या बहुसंख्यकवादी नीतियाँ नहीं है बल्कि नस्लवाद व भेदभाव है, जिससे अल्पसंख्यक समाज हमेशा दबाव महसूस करता है।
विषय-वस्तु के दूसरे भाग में बहुसंस्कृतिवाद के सिद्धांत एवं इस दिशा में संभावित समाधान पर प्रकाश डालेंगे-
बहुसंस्कृतिवाद के सैद्धांतिक विमर्श:
प्रत्येक समुदाय सह-अस्तित्व में रहते हुए एक-दूसरे के मूल्यों से कुछ-न-कुछ लेकर समृद्ध होता रहता है, क्योंकि प्रत्येक संस्कृति में कुछ ऐसे तत्त्व है जो मूल्यवान है, जिन्हें दूसरी संस्कृति के लोगों को भी जानना चाहिये। चूँकि बहुसंस्कृतिवाद समुदाय की सुरक्षा पर ध्यान देता है इसलिये इसके तर्क बाहरी पाबंदियों से समुदाय के हिफाजत की तरफदारी करते हैं लेकिन इस क्रम में समुदाय के इस अधिकार को भी मान्तया दे बैठते हैं कि वह अपने सदस्यों पर आंतरिक प्रतिबंध लगा सकता है। वहीं पर इसका रूप विकृत हो जाता है क्योंकि ये प्रतिबंध व्यक्ति की आलोचनात्मक व रचनात्मक स्वतंत्रता को नुकसान पहुँचाते हैं।
संभावित समाधान
- सर्वप्रथम धर्म से राजनीति को अलग करना होगा। विविधता एवं धार्मिक आचार-व्यवहार व्यक्तिगत दायरे तक सीमित होने चाहिये और नैतिक, सांस्कृतिक व जीवनशैली से जुड़े विकल्पों को व्यक्ति के स्तर पर छोड़ देना चाहिये।
- समान नागरिक एवं राजनीतिक मूल्यों को प्रोत्साहन देना चाहिये और उनके आधार पर नागरिकों में परस्पर निकटता स्थापित करनी चाहिये।
- अल्पसंख्यकों के हितों का विशेष ध्यान रखना होगा किंतु सांप्रदायिकता के माध्यम से नहीं अपितु कानूनी रक्षोपायों द्वारा तथा उनके लिये विशिष्ट योजनाएँ बनाकर।
- राज्य को सांप्रदायिकता के किसी भी रूप के प्रति कठोरतम रवैया अपनाना चाहिये। देश या समाज के बहुसंख्यक समुदाय को अधिक उदारता व सहिष्णुता का परिचय देना चाहिये।
- वैश्विक शक्तियों को विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मामलों में अनुचित हस्तक्षेप से बचना चाहिये। यदि हस्तक्षेप अनिवार्य हो तो इसके पूर्व संयुक्त राष्ट्र की स्वीकृति ली जाए।
निष्कर्ष
अंत में संक्षिप्त, संतुलित एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें-
बहुसांस्कृतिकवाद समुदायों की बहुलतावादी बनावट को स्वीकार करते हुए बहुलतावादी नीतियों को मांग करता है और यह मांग लोकतंत्र का मार्ग प्र्रस्त करती है। इसके पीछे मूल तर्क यह है कि हम दूसरे धर्मों/संस्कृतियों व विचारों का आदर करें जो मनुष्य बनने की प्राथमिक शर्त है।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Print