भारत के सूखा प्रवण एंव अर्द्धशुष्क प्रदेशों में लघु जलसंभर विकास परियोजनाएँ किस प्रकार जल संरक्षण में सहायक हैं?
28 Feb, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोलभूमिका:
‘लघु जलसंभर कार्यक्रम’ नदी बेसिन प्रबंधन की लघु स्तरीय इकाई है। इसे कमान क्षेत्र विकास कार्यक्रम के विकल्प के रूप में देखा गया है। पारिस्थितिक संतुलन के लिये इस कार्यक्रम में भूमि, जल व वनों के समन्वित प्रबंधन पर बल दिया जाता है। इसके तहत चैक डैम, कुओं, तालाब, बावड़ी, आहार आदि का निर्माण शामिल है।
विषय-वस्तु
भारत मौसमी विविधताओं वाला देश है, जहाँ कुछ क्षेत्रों में वर्षा अत्यधिक मात्रा में होती है, वहीं कुछ क्षेत्रों में अल्प। भारत में वर्षा का वितरण असमान है तथा यह केवल मानसूनी दिनों में ही होती है। वर्षा की अनिश्चितता एवं उसके वितरण में क्षेत्रीय असमानता के कारण भारत में शुष्क एवं अर्द्धशुष्क प्रदेशों का विकास हुआ है, जो निम्नवत है-
लघु जलसंभर की विशेषताएँ
लघु जलसंभर कार्यक्रम के अंतर्गत जलद्रोणी की ढाल प्रवणता तथा अन्य भौतिक संरचना का निर्धारण करते हुए परियोजना का निर्माण किया जाता है। जलसंभर विकास कार्यक्रम अपने सफल संचालन के दौरान सूखा एवं अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में निम्न प्रकार से जल संरक्षण कार्यक्रम को सहायता प्रदान कर सकता है-
उपर्युक्त माध्यम से लघु जलसंभर कार्यक्रम सूखा एवं अर्द्धशुष्क प्रदेशों में जल संरक्षण को प्रोत्साहन देता है। हरियाली, नीरू-मीरू, तथा हाल में शुरू नीरांचल जैसी लघु, जल-संभर योजनाएँ, ‘प्रति बूंद ज़्यादा फसल’ की अवधारणा तो पूर्ण होंगी ही, साथ ही पेयजल, मत्स्य पालन एवं पशुपालन में भी सहायक होंगी।
निष्कर्ष
अंत में संक्षिप्त, संतुलित एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें-