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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत के सूखा प्रवण एंव अर्द्धशुष्क प्रदेशों में लघु जलसंभर विकास परियोजनाएँ किस प्रकार जल संरक्षण में सहायक हैं?

    28 Feb, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    उत्तर :

    भूमिका:

    ‘लघु जलसंभर कार्यक्रम’ नदी बेसिन प्रबंधन की लघु स्तरीय इकाई है। इसे कमान क्षेत्र विकास कार्यक्रम के विकल्प के रूप में देखा गया है। पारिस्थितिक संतुलन के लिये इस कार्यक्रम में भूमि, जल व वनों के समन्वित प्रबंधन पर बल दिया जाता है। इसके तहत चैक डैम, कुओं, तालाब, बावड़ी, आहार आदि का निर्माण शामिल है।

    विषय-वस्तु

    भारत मौसमी विविधताओं वाला देश है, जहाँ कुछ क्षेत्रों में वर्षा अत्यधिक मात्रा में होती है, वहीं कुछ क्षेत्रों में अल्प। भारत में वर्षा का वितरण असमान है तथा यह केवल मानसूनी दिनों में ही होती है। वर्षा की अनिश्चितता एवं उसके वितरण में क्षेत्रीय असमानता के कारण भारत में शुष्क एवं अर्द्धशुष्क प्रदेशों का विकास हुआ है, जो निम्नवत है-

    • भारत का उत्तरी-पश्चिमी प्रदेश जिसमें पंजाब, हरियाणा, राजस्थान तथा गुजरात शामिल है।
    • झारखंड, उत्तर प्रदेश का कुछ भाग, मध्य प्रदेश का कुछ हिस्सा तथा ओडिशा।
    • पश्चिमी घाट का वृृष्टि छाया प्रदेश
    • इन क्षेत्रों में लघु जलसंभर कार्यक्रम अपनी विशेषताओं के आधार पर जल संरक्षण मं बेहद उपयोगी हो सकता है।

    लघु जलसंभर की विशेषताएँ

    लघु जलसंभर कार्यक्रम के अंतर्गत जलद्रोणी की ढाल प्रवणता तथा अन्य भौतिक संरचना का निर्धारण करते हुए परियोजना का निर्माण किया जाता है। जलसंभर विकास कार्यक्रम अपने सफल संचालन के दौरान सूखा एवं अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में निम्न प्रकार से जल संरक्षण कार्यक्रम को सहायता प्रदान कर सकता है-

    • लघु जलसंभर कार्यक्रम के अंतर्गत वर्षा जल के प्रवाह वाले क्षेत्र में जल को एकत्र करने के लिये छोटे-छोटे बाँध तथा चेकडैम बनाए जाते हैं।
    • इन छोटे-छोटे बाँधों में वर्षा जल एकत्र होने से धरातलीय जल रिसकर भूमि के अंदर पहुँचता है तथा भौम जल स्तर को सुधारता है।
    • इसके प्रभाव से भूमि में आर्द्रता का आविर्भाव होता है, जो कृषि प्रणाली में मददगार है।
    • लघु जलसंभर विकास कार्यक्रम के अंतर्गत निर्मित बाँध से छोटी-छोटी नहरें निकाली जाती है, जो अपने प्रवाह क्षेत्रों में सिंचाई प्रदान करने के साथ-साथ भौम जलस्तर में भी वृद्धि करती है।
    • लघु जलसंभर कार्यक्रम से मवेशियों को चारा एवं पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित होने से लोगों को इस कार्यक्रम में भागीदारी से सहायता मिलती है तथा वे जल संरक्षण कार्यक्रम में योगदान देने के लिये तत्पर होते हैं।
    • लघु जलसंभर विकास कार्यक्रम से हरित क्षेत्रों में वृद्धि होती है, इससे वर्षा को प्रोत्साहन मिलता है।
    • लघु जलसंभर विकास कार्यक्रम के चलते प्रवास की समस्या समाप्त होती है, क्योंकि लोगों को कृषिगत कार्यों से आय मिलने लगती है।

    उपर्युक्त माध्यम से लघु जलसंभर कार्यक्रम सूखा एवं अर्द्धशुष्क प्रदेशों में जल संरक्षण को प्रोत्साहन देता है। हरियाली, नीरू-मीरू, तथा हाल में शुरू नीरांचल जैसी लघु, जल-संभर योजनाएँ, ‘प्रति बूंद ज़्यादा फसल’ की अवधारणा तो पूर्ण होंगी ही, साथ ही पेयजल, मत्स्य पालन एवं पशुपालन में भी सहायक होंगी।

    निष्कर्ष

    अंत में संक्षिप्त, संतुलित एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें-

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