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प्रश्न :
'ठुमरी’ अर्द्ध-शास्त्रीय भारतीय संगीत की एक विशिष्ट शैली है जो आज भी अपनी जीवंतता को अक्षुण्ण रखे हुए हैं। इस शैली की मौलिक विशेषताओं की चर्चा करते हुए इससे संबंधित प्रमुख कलाकारों का उल्लेख करें।
25 Feb, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृतिउत्तर :
प्रश्न विच्छेद
‘ठुमरी’ की मौलिक विशेषताओं का उल्लेख करते हुए इससे संबंधित कलाकारों को बताना है।
हल करने का दृष्टिकोण
‘ठुमरी’ का संक्षिप्त परिचय लिखते हुए इसके विशिष्ट अभिलक्षणों को बिंदुवार बताएँ।
इसके प्रमुख कलाकारों का उल्लेख करें।
वर्तमान में ‘ठुमरी’ की जीवंतता का उल्लेख करते हुए निष्कर्ष लिखें।
‘ठुमरी’ भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक लोकप्रिय गायन शैली है। इस शैली की उत्पत्ति उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में हुई थी। इसमें भगवान श्रीकृष्ण और राधा के जीवन के प्रसंगों का वर्णन किया जाता है। यह एक मुक्त गायन शैली है, जिसमें कम-से-कम शब्दों के द्वारा अधिकाधिक अर्थों को संगीत के माध्यम से व्यक्त किया जाता है। ठुमरी गायन शैली की चारित्रिक विशेषताओं को निम्नलिखित रूप से समझा जा सकता है-
- यह अपनी संरचना और प्रस्तुति में अधिक गीतात्मक है।
- ये प्रेमगीत होते हैं, इसलिये शब्द रचना अति महत्त्वपूर्ण होती है।
- ठुमरी का गायन एक विशिष्ट मनोदशा में होता है। इसी आधार पर इसे खमाज़, काफी, भैरवी आदि रागों में प्रस्तुत किया जाता है।
- इसमें संगीतात्मक व्याकरण का सख्ती से पालन नहीं किया जाता है।
- ठुमरी गायन की दो शैलियाँ हैं- पूरब या बनारस शैली, यह धीमी और सौम्य शैली है और पंजाबी शैली, यह अधिक जीवंत है।
- रसूलन देवी, सिद्धेश्वरी देवी, गौहर जान, बेगम अख्तर, शोभा गुर्टू, नूरजहाँ और प्रभा आत्रे ठुमरी गायन शैली के प्रमुख कलाकार हैं। अक्तूबर 2017 में ठुमरी की रानी कही जाने वाली गिरिजा देवी का निधन हो गया। गिरिजा देवी ने ठुमरी गायन को देश-विदेश में प्रसिद्धि दिलवाई। गिरिजा देवी को पद्मश्री, पद्मभूषण, पद्म विभूषण आदि पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
निष्कर्षत: ठुमरी शैली आज भी अपनी जीवंतता का अक्षुण्ण बनाए हुए हैं।
संबंधित स्रोत: CCRT, इंटरनेट।
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