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प्रश्न :
सर्वविदित है कि भारतीय लोकतंत्र में चुनाव को साफ-सुथरा और पारदर्शी बनाना सर्वदा चुनौतिपूर्ण कार्य रहा है। क्या चुनावी बॉण्ड द्वारा इस दिशा में अपेक्षित परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं? समीक्षा कीजिये।
18 Feb, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
भूमिका:
चुनावी बॉण्ड को राजनीतिक दलों को चंदा देने की एक नई व्यवस्था के रूप में लाया गया है, जिसका उद्देश्य राजनीतिक दलों के गलत फंडिंग पर रोक लगाना है।
विषय-वस्तु
भारतीय राजनीति में चुनावी चंदे का मामला हमेशा से ही विवादों में रहा है। इसे कालेधन के उपयोग और राजनीति के अपराधीकरण के लिये दोषी माना जाता रहा है। इसलिये चुनावी फंडिंग के तरीकों में हमेशा बदलाव किये गए। जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 29बी में चुनावी फंडिंग के तरीकों का जिक्र किया गया है। इसके अनुसार कोई भी व्यक्ति या गैर-सरकारी कंपनी राजनीतिक दलों को चंदा दे सकता है। परंतु 1968 में कॉर्पोरेट फंडिंग पर प्रतिबंध लगा दिया गया। हालाँकि 1985 में कंपनी अधिनियम के संशोधन द्वारा कॉर्पोरेट फंडिंग को पुन: बहाल कर दिया गया। इसके अनुसार कंपनियाँ पिछले तीन सालों में अपने औसत शुद्ध लाभ का पाँच फीसदी तक दान कर सकती हैं।
चुनावी फंडिंग प्रक्रिया में दिनेश गोस्वामी समिति की रिपोर्ट, 1990 और इंद्रजीत गुप्ता समिति की रिपोर्ट, 1998 के तहत चुनावों में आंशिक राज्य वित्त पोषण की सिफारिश के उपरांत और अधिक बदलाव आए। 2003 में व्यक्तिगत और कॉपेरिटे फंडिंग को पूरी तरह से कर-मुक्त बना दिया गया। लेनि साथ ही कंपनियों द्वारा राजनीतिक चंदा की सीमा भी तय की गई। 2017 में केंद्र सरकार ने चुनाव आयोग द्वारा 20 हज़ार रुपए की सीमा को घटा कर 2 हज़ार रुपए करने की बात मान ली। परंतु सरकार को चुनावी फंडिंग को और पारदर्शी बनाने हेतु चुनावी बॉण्ड की संकल्पना पर विचार करना पड़ा।
चुनावी बॉण्ड का समालोचनात्मक मूल्यांकन
- चुनावी बॉण्ड की इस प्रक्रिया के तहत आरबीआई के पास दाता और चंदा प्राप्त करने वाले की रिपोर्टिंग होती है एवं आरबीआई चूँकि किसी-न-किसी रूप में केंद्र सरकार के अधीन है इसलिये यह आशंका जतायी जा रही है कि सत्तारूढ़ पार्टी विपक्षी दनलों को दान देने वाली कंपनियों को बदले की भावना का शिकार बना सकती हैं।
- इसे लाने के पीछे यह तर्क दिया जा रहा था कि इसके तहत दानदाताओं की पहचान गुप्त रखते हुए उन्हें उत्पीड़न से बचाया जा सकेगा। लेकिन इनका क्रियान्वयन सरकार के ऊपर ही निर्भर करता है अत: दावा भी आधारहीन प्रतीत होता है।
- यह दावा किया जाना कि इन बॉण्डों को बैंकिंग चैनल के द्वारा ही खरीदा जा सकता है अत: यह योजना चुनावी फंडिंग के ज़रिये कालेधन के प्रवेश पर रोक लगाएगी, गलत है।
दरअसल, भारतीय लोकतंत्र में चुनाव को साफ-सुथरा और पारदर्शी बनाना हमेशा से चुनौतीपूर्ण रहा है। और पारदर्शिता के नमा पर सरकार की हर कवायद अधूरी साबित हुई है। चुनावी बॉण्ड में चन्दा हासिल करने के लिये दलों के लिये योग्यता निर्धारित करने से लेकर खातों के ज़रिये बॉण्ड खरीदने के प्रावधान सराहनीय है। लेकिन दानदाताओं के नाम को गोपनीय रखने के सरकार की मंशा चुनावी बॉण्ड के मकसद को अधूरा कर दिया है। अत: यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि पूर्ण पारदर्शिता वाली किसी प्रक्रिया पर विचार करते हुए चुनावी चन्दे को भ्रष्टाचार और कालाधन से मुक्त किया जाए।
निष्कर्ष
अंत में संक्षिप्त, संतुलित एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें-
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