आज़ादी के 70 सालों के बाद भी अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति समुदाय जिन समस्याओं से ग्रसित हैं क्या राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग तथा राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग उनका समाधान करने में असफल रहे हैं? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क प्रस्तुत कीजिये।
23 Feb, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
प्रश्न विच्छेद नुसूचित जाति आयोग एवं अनुसूचित जनजाति आयोग के कार्य एवं शक्तियाँ। अनुसूचित जाति एवं जनजाति समुदाय द्वारा सामना की जाने वाली समस्याएँ। हल करने का दृष्टिकोण सर्वप्रथम संक्षेप में परिचय दें। अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग के कार्यों को संक्षेप में बताएँ। अनुसूचित जाति एवं जनजाति समुदाय द्वारा सामना की जाने वाली समस्याओं का उल्लेख करते हुए उपर्युक्त आयोगों का मूल्यांकन करें। अंत में निष्कर्ष दें। |
भारत में अनुसूचित जाति एवं जनजाति समुदाय सदियों से उपेक्षित, वंचित एवं शोषित रहा है। अत: इन्हें उत्पीड़न एवं शोषण से बचाने के लिये भारतीय संविधान अन्य प्रावधानों (जैसे-आरक्षण आदि) के अलावा अनुच्छेद 338 के तहत अलग आयोग के गठन की व्यवस्था करता है।
अनुसूचित जाति आयोग (अनुच्छेद 338) तथा अनुसूचित जनजाति आयोग (अनुच्छेद 338-क) क्रमश: अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के संदर्भ में निम्नलिखित कार्य करते हैं-
इनके हितों का उल्लंघन करने वाले किसी मामले की जाँच पड़ताल एवं सुनवाई करना।
इनके सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भाग लेना तथा उन पर सलाह देना।
इनके संरक्षणात्मक उपायों के संदर्भ में केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की समीक्षा करना तथा इस संदर्भ में आवश्यक सिफारिशों तथा सामाजिक-आर्थिक विकास के अन्य उपायों के बारे में संस्तुति करना।
परंतु आज़ादी के सत्तर वर्षों बाद भी अनुसूचित जाति एवं जनजाति समुदाय ऐसी समस्याओं से ग्रसित है, जिसके आधार पर इन आयोगों को असफल माना जाता है, जैसे-
दोनों समुदाय अपेक्षाकृत गरीब एवं भूमिहीनता की समस्या से ग्रस्त हैं जिसके कारण उन्हें बंधुआ मज़दूरी या अन्य प्रकार के शोषण का शिकार होना पड़ता है।
स्वास्थ्य एवं कुपोषण की समस्या, जो कि आर्थिक पिछड़ेपन एवं असुरक्षित आजीविका के साधनों के कारण और गंभीर हो जाती है।
अशिक्षा एवं बेरोज़गारी का उच्च स्तर, यद्यपि समुदाय का एक भाग उच्च शिक्षा ग्रहण कर ऊँचे पदों पर आसीन है, परंतु बहुसंख्यक भाग आज भी अशिक्षित एवं बेरोज़गार है।
दलितों के उत्पीड़न की घटनाएँ आज भी होती रहती हैं, कभी ‘ऊना घटना’ के रूप में तो कभी ‘सहारनपुर’ मामले के रूप में।
इसके अलावा, जनजाति समुदाय के पहचान का संकट भी गंभीर समस्या के रूप में उभरा है, इसके साथ ही विस्थापन भी एक प्रमुख समस्या है।
लेकिन यह भी ध्यान रखना होगा कि इन आयोगों की शक्तियाँ सीमित हैं, इनकी प्रकृति केवल सलाहकारी है। यद्यपि इन्हें सिविल न्यायालय की शक्तियाँ प्रदान की गई हैं, लेकिन ये शक्तियाँ उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के समान नहीं हैं।
वस्तुत: अनुसूचित जाति आयोग एवं जनजाति आयोग ने अपने सीमित अधिकार क्षेत्र में इन समुदायों के कल्याण के लिये महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। इनकी समस्याओं को निरतंर संसद के ध्यान में लाया गया तथा सरकार ने भी कई कल्याणकारी कार्यक्रमों एवं कानूनों का निर्माण किया है। जैसे- अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989।
निष्कर्षत: कह सकते हैं कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति समुदाय भले ही आज कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं लेकिन इसे अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोगों की असफलता के रूप नहीं देखा जाना चाहिये बल्कि इनके अधिकारों एवं शक्तिओं में वृद्धि करने की ज़रूरत है ताकि वे बेहतर तरीके से कार्य कर सकें।