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प्रश्न :
बीसवीं सदी का अंतिम दशक भारतीय सामाजिक-आर्थिक जीवन का एक महाप्रस्थान सिद्ध हुआ, जिसमें वैश्विक चुनौतियों एवं संभावनाओं के साँचे पर सरकार की नीतियों एवं कार्यव्रमों ने आकार ग्रहण किया, जो अपने चारित्रिक लक्षणों में पूर्ववर्ती नीतियों एवं कार्यव्रमों से नितांत भिन्न थे। व्याख्या करें।
21 Feb, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
प्रश्न विच्छेद
LPG नीतियों का भारतीय सामाजिक-आर्थिक जीवन पर प्रभाव एवं इसके कारण सरकार की नीतियों में आये परिवर्तन।
हल करने का दृष्टिकोण
भारतीय सामाजिक-आर्थिक जीवन पर LPG नीतियों का प्रभाव।
सामाजिक-आर्थिक जीवन में परिवर्तन के संगत सरकारी नीतियों में बदलाव।
पूर्ववर्ती नीतियों तथा समकालीन नीतियों की तुलना करते हुए निष्कर्ष लिखें।
स्वतंत्रता के बाद बाह्य हस्तक्षेपों से स्वयं को मुक्त रखने के लिये भारत ने नियंत्रित आर्थिक नीति अपनाई थी परंतु 20वीं सदी के अंतिम दशक में जब भुगतान का संकट नियंत्रण से बाहर हो गया तो सरकार ने आर्थिक सुधारों की एक शृंखला की शुरुआत की जिसे उदारीकरण, निजीकरण तथा वैश्वीकरण (LPG) के नाम से जाना जाता है। इन सुधारों का भारतीय सामाजिक-आर्थिक जीवन पर निम्नलिखित प्रभाव हुआ-
- भारतीय अर्थव्यवस्था में निर्यात में वृद्धि हुई तथा चालू खाता घाटा कम हो गया, साथ ही विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि हुई, फलस्वरूप भारत में भुगतान की समस्या खत्म हुई।
- सरकारी नियंत्रण में कमी तथा लाइसेंस राज की समाप्ति के पश्चात् भारत में व्यापार करना आसान हुआ तथा नए रोज़गारों का सृजन हुआ।
- प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हुई तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आगमन से भारत में उपभोक्तावाद का प्रसार हुआ।
- कंपनियों के कुछ विशेष-क्षेत्रों में केंद्रित होने के कारण क्षेत्रीय असंतुलन उत्पन्न हुआ तथा प्रव्रजन में वृद्धि हुई।
- शिक्षा में निजीकरण के पश्चात् उच्च एवं तकनीकी शिक्षा का विस्तार हुआ परंतु गुणवत्ता एवं रोज़गार योग्यता में अपेक्षित वृद्धि नहीं हुई।
- संयुक्त परिवार जैसी संस्था कमज़ोर हुई तथा एकल परिवार का प्रचलन बढ़ा। देर से विवाह, तलाक जैसे मामलों में वृद्धि हुई तथा वृद्धाश्रमों की संख्या में भी इजाफा हुआ।
- भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि हुई तथा उपभोक्ताओं को अधिक विकल्प मिले।
- भारत के समक्ष नई वैश्विक चुनौतियाँ तथा संभावनाएँ उभरकर आईं जिसके अनुसार सरकार ने अपनी नीतियों में कई आवश्यक बदलाव भी किये:
- सरकार ने 1991 में नई आर्थिक नीति की घोषणा की एवं अप्रगतिशील कानूनों को खत्म किया।
- भारत में निवेश को नियंत्रित करने के लिये सेबी (SEBI), FIPB जैसी संस्थाओं का गठन हुआ ताकि निवेश की अस्थिरता से निपटा जा सके।
- वैश्विक चुनौतियों एवं संभावनाओं के आलोक में द्वितीय पीढ़ी के सुधार लागू किये गए।
- प्रदूषण तथा जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक समस्या से निपटने के लिये भारत सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय संधियों के सापेक्ष घरेलू नीतियों को लागू किया है। इसी संदर्भ में जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना अपनाई गई।
- अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार श्रम कानून लागू किये गए।
- महिलाओं के अधिकारों तथा अवसरों में वृद्धि करने हेतु विभिन्न स्तर पर महिलाओं को आरक्षण प्रदान किया गया।
- विकास की क्षेत्रीय विसंगतियाँ दूर करने के लिये गैर-विकसित क्षेत्रों में उद्योग स्थापित करने हेतु प्रोत्साहन दिया गया।
- जन-जन तक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय स्वास्थ्य अभियान की शुरुआत की गई।
- वैश्वीकरण के उपरांत भारत में आर्थिक तथा साइबर अपराधों में भी वृद्धि हुई, जिसके लिये भारत ने कार्यबल का गठन किया, साथ ही अंतर्राष्ट्रीय सहयोग पर भी ध्यान दिया।
वैश्वीकरण ने भारत के समक्ष नए अवसर भी प्रस्तुत किये हैं, भारत आई.टी. सेवाओं का सर्वप्रमुख निर्यातक देश है। निर्यात को प्रोत्साहन देने के लिये भारत में कई नीतियों को लागू किया गया है। जैसे- विशेष आर्थिक क्षेत्रों का गठन, मेक इन इंडिया जैसे कायक्रमों को लागू करना तथा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की प्रक्रिया का सरलीकरण। वित्तीय क्षमता दुरुस्त रखने के लिये भारत ने FRBM अधिनियम लागू किया है तथा बेसेल प्रतिमान का पालन किया है। अन्य क्षेत्रों में भी आवश्यक पहल की गई है ताकि भारत में सामाजिक-आर्थिक गतिविधियाँ सुचारु रूप से चलें।
भारत के सुधारों की राह कठिन थी परंतु भारत ने अवसरों को भुनाया तथा चुनौतियों का बेहतर प्रबंधन किया। भारत जनसांख्यिकीय लाभांश को भुनाकर स्वयं को विश्व की श्रम-शक्ति की राजधानी के रूप में विकसित करने को प्रयासरत है। यद्यपि समाज पर कुछ नकारात्मक प्रभाव पड़े हैं परंतु भारतीय समाज एक न्यायसंगत समाज बनने की ओर अग्रसर हुआ है।
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