मानव जीवन के अस्तित्व और प्रगति के लिये ज़रूरी है कि जीवन के हर पहलू में विज्ञान और तकनीक का इस्तेमाल हो। लेकिन क्या यह तकनीक, भविष्य में कुछ नयी चुनौतियों को भी उत्पन्न करेगी। परीक्षण कीजिये।
17 Feb, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकीभूमिका:
तकनीकों के उचित उन्नयन और विकास का सीधा संबंध देश एवं उसके नागरिकों से होता है परंतु विज्ञान और तकनीक को नैतिकता और सामाजिक दृष्टिकोण से कई बार कठघरे में खड़ा किया जाता है।
विषय-वस्तु
सामान्य तौर पर तकनीक का अर्थ ज्ञान व कौशल के संयोजन से लिया जाता है लेकिन इस तकनीक की दिशा क्या हो इस पर सर्वदा विवाद रहा है। हालाँकि तकनीक ने मानव जीवन को अत्यंत सहज, सरल और रोचक बनाया है। नए युग के साथ नई तकनीक जब-जब आती हे, तो उसके साथ नए प्रयोग भी होते हैं। यह प्रयोग समाज के विकास के लिये जरूरी होता है। देखा जाए तो आज खाद्य सुरक्षा के संदर्भ में GM-Crop की भूमिका अहम होती जा रही है। बीटी कॉटन का उत्पादन GM-Crop के रूप में शुरू हुआ था। बीटी कॉटन जैसी नकदी फसलों के उत्पादन के साथ-साथ जीन संवर्धन तकनीक द्वारा फसलों में पोषक तत्त्वों को भी बढ़ाया जा सकता है। दूसरी तरफी हम देखते है कि व्रिस्पर/कैस 9 जैसी जीन एडिटिंग तकनीक द्वारा सिकल सेल एनीमिया जैसी बीमारियों पर विजय पाई गई। साथ ही भविष्य में विभिन्न लाईलाज और जानलेवा बीमारियों जैसे कैंसर, डायबिट्ीज आदि से इसके द्वारा निजात मिलने की संभावना है। मनुष्य के जीन में चिकित्सीय कारणों से बदलाव नैतिक रूप से न्यायसंगत लगता है लेकिन डिजाइनर बेबी के स्तर पर मनुष्य के गुणों में संवर्धन के लिये इसे न्यायप्रिय रूप में देखना कई सवाल खड़े करता है।
इस विषय से जुड़े अनैतिक पक्षों पर गौर करने से पता चलता है कि जीएम फसलों के संबंध में किये गए दावे गलत साबित हो रहे हैं एवं जीएम बीज मुहैया कराने वाली कंपनियों का मुनाफा काफी बढ़ गया है। इन फसलों से न केवल जानवरों को नुकसान पहुँचा है बल्कि पशुओं के दुग्ध उत्पादन पर भी नकारात्मक असर देखने को मिला है। इस लिहाज से जीएम फसलों के दीर्घकालिक प्रभावों की अनदेखी नहीं की जा सकती। साथ ही बौद्धिक संपदा अधिकार का मुद्दा भी इसके नैतिक होने पर प्रश्न चिह्न लगाता है। क्योंकि देखा गया है कि एकाधिकार हासिल करने के लिये बड़ी कंपनियाँ छोटी-छोटी बीज कंपनियों को खरीद लेती हैं जिससे किसानों की आजीविका प्रभावित होती है क्योंकि उन्हें प्रत्येक वर्ष बीज के लिये भुगतान करना पड़ता है।
इसी प्रकार CRISPR/Cas9 जैसी तकनीक का इस्तेमाल केवल चिकित्सीय सुधार के लिये न होकर मनुष्य के डीएनए में गुणों के संवर्द्धन के लिये किया जा रहा है जो निकट भविष्य में अनेक चुनौतियाँ खड़ी कर सकता है। अनुसंधान व्रम में पाया गया है कि सफेद चूहों पर किये गए एक प्रयोग में जीन के बाद उसकी अगली संतति में अनेक विकार उत्पन्न होने लगे। डिजाइनर बेबी अधिक बेहतर दिखने वाले, अधिक कुशल व अधिक बुद्धिमान होंगे उनसे समाज में पहले से मौजूद असमानताओं में वृद्धि होगी। साथ ही जीन-एडीटिंग द्वारा ‘एथिलिटिक एबिलिटी’ बढ़ाई जा सकेगी जिससे खेल जगत में प्रतिस्पर्धा के लिये कोई आधार नहीं बचेगा। जीन-एडीटिंग के कारण व्यक्तिगत पहचान को भी एक चुनौती के रूप में देखा जा रहा है क्योंकि इसका प्रयोग आपराधिक गतिविधियों या उनसे बचने के लिये भी किया जा सकता है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि तकनीक की दिशा में बारीकी से सोच-विचार हो ताकि इसका गलत इस्तेमाल न होने पाए।
निष्कर्ष
अंत में संक्षिप्त, संतुलित एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें-
भारतीय संविधान में वर्णित मौलिक कर्त्तव्य के अनुसार भारत के प्रत्येक नागरिक का हय कर्त्तव्य होता है कि वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवाद और ज्ञानाजन तथा सुधार की भावना का विकास करें। लेकिन इन मानकों को तय करना जरूरी है जिसे किसी प्रकार की असमानता, भेदभाव व शोषण न हों, एवं यह भी एक सभ्य समाज की ही पहचान है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि किसी भी तकनीक के साथ उसके सही व गलत पक्ष जुड़े होते हैं। लेकिन तकनीक का प्रयोग न केवल मानव जीवन के उत्थान में बल्कि समस्त जीव-जगत व प्रकृति के फायदे के लिये होना चाहिये।