मंदिर स्थापत्य की तीन मंदिर शैलियों यथा नागर, द्रविड़ एवं बेसर के तुलनात्मक अध्ययन पर प्रकाश डालें।
12 Feb, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृतिभूमिका:
मंदिर निर्माण की प्रक्रिया का आरंभ तो मौर्य काल से ही शुरू हो गया था, किंतु आगे चलकर उसमें सुधार होता गया और गुप्त काल को संरचनात्मक मंदिरों की विशेषता से पूर्ण माना जाता है।
विषय-वस्तु
छठी शताब्दी ई. तक उत्तर और दक्षिण भारत में मंदिर वास्तुकला शैली लगभग एक समान थी, लेकिन छठी शताब्दी ई. के बाद प्रत्येक क्षेत्र का भिन्न-भिन्न दिशाओं में विकास हुआ। इस प्रकार आगे ब्राह्मण हिंदू धर्म मंदिरों के निर्माण में तीन प्रकार की शैलियों- नागर, द्रविड़ और बेसर शैली का प्रयोग किया।
नागर शैली
मंदिर स्थापत्य की इस शैली का विकास हिमालय से लेकर विंघ्य क्षेत्र तक हुआ। नागर स्थापत्य के मंदिर मुख्यत: नीचे से ऊपर तक आयताकार रूप में निर्मित होते हैं। सामान्यत: उत्तर भारतीय मंदिर शैली में मंदिर एक वर्गाकार गर्भ-गृह, स्तंभों वाला मंडप तथा गर्भ-गृह के ऊपर एकरेखीय शिखर से संयोजित होता है। नागर शैली में बने मंदिरों के गर्भ-गृह के ऊपर एक रेखीय शिखर होता है। शिखर का सबसे महत्त्वपूर्ण भाग सबसे ऊपर लगा आमलक होता है, जो उत्तरी भारत के मंदिरों की मुख्य पहचान है।
विशेषताएँ:
द्रविड़ शैली
7वीं शताब्दी में द्रविड़ शैली की शुरुआत हुई, परंतु इसका विकसित रूप आठवीं शताब्दी से देखने को मिलता है। कृष्णा नदी से लेकर कन्याकुमारी तक द्रविड़ शैली के मंदिर पाए जाते हैं। द्रविड़ मंदिरों का निचला भाग वर्गाकार और मस्तक गुंबदाकार, छह या आठ पहलुओं वाला होता है।
विशेषताएँ
बेसर शैली
नागर और द्रविड़ शैलियों के मिले-जुले रूप को बेसर शैली कहते हैं। इस शैली के मंदिर विंध्याचल पर्वत से लेकर कृष्णा नदी तक पाए जाते हैं। बेसर शैली को ‘चालुक्य शैली’ भी कहते हैं।
विशेषताएँ:
निष्कर्ष
अंत में संक्षिप्त, संतुलित एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें-